पोषण स्तर की बढ़ोत्तरी के लिए स्थानीय प्रयास
Date:12-11-21 To Download Click Here.
वैश्विक पोषण सूचकांक में भारत की स्थिति लगातार खराब रही है। 2020 में भारत का स्थान 94वां था। इस दृष्टि से भारत उन 88 देशों में शामिल हो गया है, जो संभवतः 2025 तक वैश्विक पोषण लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल नहीं हो सकेंगे।
वैश्विक पोषण रिपोर्ट के मानक और भारत –
- 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में वृद्धिरोध, प्रजनन योग्य आयु की महिलाओं में एनीमिया, बच्चों में मोटापा और जन्म से 6 माह तक केवल स्तनपान, ऐसे चार मानक है, जिन पर पोषण रिपोर्ट तैयार की जाती है।
सरकारी प्रयास –
पोषण स्तर में भारत की स्थिति सुधारने के लिए सरकार ने मध्यान्ह भोजन (मिड डे मील) योजना, सरकारी स्कूलों, आंगनबाड़ी व अन्य बाल केंद्रों में लागू की है। इन केंद्रों के अलावा सार्वजनिक वितरण प्रणाली में वितरित किए जाने वाले अनाज के लिए मोटा अनाज जैसे ज्वार, बाजरा आदि की व्यवस्था की है। चावल को फोर्टीफाई करके उसे अधिक पौष्टिक बनाए जाने का प्रयत्न किया जा रहा है। इन प्रयासों की सच्चाई व सार्थकता की वास्तविकता को परखा जाना चाहिए।
कुछ वास्तविक तथ्य –
- भारत में आयरन की कमी से संबंधित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रीशन की 2020 की रिपोर्ट से पता चलता है कि पूर्व में बनी धारणा की तुलना में आयरन की जरूरत 40-50% कम है।
- रक्ताल्पता का पता लगाने के लिए जो विधि अपनाई जाती है, वह सही माप नहीं देती है। विश्व स्वास्थ संगठन द्वारा हीमोग्लोबिन के लिए निर्धारित सीमा भी अत्यधिक ऊँची है।
- चावल को फोर्टीफाड करके मिलाने की जो विधि है, वह सही नहीं है।
- भारत में आहार की विविधता है। अनाज के साथ 250-300 ग्राम की पत्तेदार सब्जियों के सेवन के साथ ही सभी पोषक तत्वों की कमी पूरी हो जाती है। अगर इस आहार में फोर्टीफाइड चावल की 250-300 ग्राम मात्रा है, तो वह आयरन की अधिकता के कारण नुकसानदेह हो सकता है।
भारत की कृषि में सामुदायिक भागीदारी से फसल की विविधता को बढ़ावा दिया जा रहा है। कोरापुट और वर्धा ऐसे उदाहरण है, जहां पोषक फसल के साथ विविध फल-सब्जियों का उत्पादन किया जा रहा है। स्थानीय स्तर पर सामुदायिक एकजुटता से किए जाने वाले ये प्रयास, चावल या अन्य अनाजों के कृत्रिम फोर्टीफिकेशन की तुलना में कहीं अधिक अच्छे हैं। हमें इस प्रकार के निदान के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलाना चाहिए।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित अनुरा करपड और हर्षपाल सचदेव के लेख पर आधारित। 17 अक्टूबर, 2021