
पीजी मेडिकल में सीटों को केंद्रीकृत करने पर न्यायालय का निर्णय
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देश की स्वास्थ्य सेवाओं को चलाने में मेडिकल के पोस्ट ग्रेजुएट युवाओं का बहुत योगदान है। एक तरह से वे सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा सेवाओं की रीढ़ हैं। यह सब देखते हुए हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने इन युवाओं के प्रवेश संबंधी महत्वपूर्ण निर्णय दिया है।
कुछ बिंदु –
- न्यायालय का निर्णय है कि पीजी मेडिकल पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए निवास के आधार पर कोई आरक्षण नहीं हो सकता।
- न्यायालय का यह आदेश कानून के समक्ष समानता के संवैधानिक आदेश के अनुसार है।
- न्यायालय का यह भी कहना है कि भारतीयों के लिए ‘डोमीसाइल‘ एक ही है। सभी राज्य के निवासियों को देश में कहीं भी प्रवेश लेने का अधिकार है।
- न्यायालय का यह निर्णय उन प्रश्नों के उत्तर की कड़ी में आया है, जिनमें प्रवेश का आधार संस्था या निवासक्षेत्र की प्राथमिकता से जुड़ा हुआ है।
- अभी तक कई राज्य सरकारी कॉलेजों में अखिल भारतीय कोटे के अलावा अपने राज्यों के उम्मीदवारों से भी पीजी की सीटें भरते रहे हैं। इसका औचित्य यही है कि एक क्षेत्र की बुनियादी आवश्यकताओं को उसी पृष्ठभूमि से अधिक लोगों को प्रवेश देकर बेहतर से संबोधित किया जा सकता है।
- दक्षिणी राज्यों ने लगभग प्रत्येक जिले में मेडिकल कॉलेज खोले हैं। वे राज्यों से अधिक उम्मीदवारों को लेना चाहेंगे, ताकि उनकी चिकित्सा सेवाएं बेहतर होती जाएं।
फिलहाल न्यायालय ने यूजी सीटों के लिए क्षेत्रीय आवश्यकताओं के आधार पर निवास की नजदीकी मान्य रखी है। लेकिन न्यायालय का यह निर्णय इसे भी केंद्रीकृत करने के लिए तर्क हो सकता है। इसका समाधान हर जिले में लगभग एक समान गुणवत्ता वाला शैक्षिक बुनियादी ढांचा तैयार करने में निहित है।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 31 जनवरी, 2025