परियोजनाओं और राष्ट्रीय उत्पादन में पर्यावरणीय लागत

Afeias
03 Feb 2023
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जलवायु परिवर्तन के खतरों में वैश्विक स्तर पर भारत का स्थान पांचवां है। यह देश को पारिस्थितिकी रूप से कमजोर देशों की सूची में ले आता है। हाल ही में जोशीमठ के कुछ हिस्सों से निवासियों की आपातकालीन निकासी देश के संवेदनशील हिस्सों के लिए डिजाइन की गई बुनियादी सुविधाओं और निर्माण योजनाओं के पुनर्विचार को प्रेरित करती है।

      आर्थिक और मानवीय नुकसान की इस चेतावनी को कुछ बिंदुओं में देखने का प्रयत्न करते हैं –

  • 2020 के ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स में पांचवे स्थान पर रखे जाने के बाद से भारत ने 2070 तक राष्ट्रीय स्तर पर नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है। यहां हमारा प्रदर्शन खराब है।
  • आरबीआई बुलेटिन के हाल के अध्ययन में बताया गया है कि किसी भी भारतीय डेटाबेस में पर्यावरण संकेतकों पर डेटा उपलब्ध नहीं है। शोधकर्ताओं को ऐसे क्षेत्र में विदेशों से मिले डेटा पर भरोसा करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
  • बहरहाल, नोबेल विजेता अर्थशास्त्री विलियम नोर्डहास ने जलवायु परिवर्तन और उससे जुड़े आर्थिक पक्ष पर गहन अध्ययन किया है। उनके अनुसार 1973 और 2018 के बीच नेट या शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद की वृद्धि दर पारिस्थितिकी लागत को समायोजित करने के बाद, असमायोजित (अनएडजेस्टेड) शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद से मामूली रूप से अधिक है।

इसका कारण है कि समय के साथ आउटपुट और एक अतिरिक्त यूनिट के उत्पादन की गिरती कीमत कम होते उत्सर्जन के सापेक्ष हो गई है। इसके चलते भारत में भी अब पारिस्थितिकी अनुकूल विकास कार्यों की उम्मीद की जा सकती है।

  • आरबीआई के अध्ययन के अनुसार सन् 2000 में सकल घरेलू उत्पाद की प्रति ईकाई के लिए 4.5 कि.ग्रा सामग्री की खपत होती थी। 2017 में यह खपत 2.8 कि.ग्रा पर आ गई है।
  • भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में पर्यावरणीय खतरों की तीव्रता अलग-अलग है। इन क्षेत्रों के ग्रीन जीडीपी पर नीति-निर्माताओं को संभावित लागतों और आर्थिक निर्णयों के लाभों का अनुमान लगाने के लिए बहुत सोच विचार करना चाहिए।

इस कदम के लिए सबसे पहले सरकारों को खुद का डेटाबेस बनाना चाहिए। इसके अनुसार ही सरकार के विभिन्न स्तरों पर नीति निर्माण में ग्रीन जीडीपी के प्रसार का प्रयत्न करना चाहिए। इस प्रकार के ठोस प्रयासों से शायद हम जोशीमठ एवं अन्य संवेदनशील क्षेत्रों में आने वाली आपदाओं को नियंत्रित कर पाएंगे।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 10 जनवरी, 2023