न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी संभव नहीं है
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हाल ही में चल रहे किसान आंदोलन में एक बात स्पष्ट है कि उनकी न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी की मांग व्यावहारिक नहीं है। कुछ बिंदु –
- कोई भी गारंटी केवल कागज पर किया गया एक वादा है। भारत सरकार ने 22 फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य या एमएसपी की घोषणा की। उनमें से अधिकांश के लिए समर्थन मूल्य कागज पर रहता है, और किसानों को मांग और आपूर्ति की स्थिति के अनुसार निर्धारित मूल्य मिलता है।
- एमएसपी का सही मतलब सरकार की खरीदी पर निर्भर करता है। सरकार इसे मुख्य रूप से धान और गेंहू पर ही लागू करती है। खरीद में गड़बडी या कम-ज्यादा मात्रा के साथ ही एमएसपी की प्रासंगिकता बदल जाती है। धान, गेंहू और बाजरा की सरकारी कीमतों में उतार चढ़ाव से हम समझते हैं कि एमएसपी जमीन पर कैसे काम करता है। 2014-15 और 2023-24 के बीच धान का एमएसपी 5.4% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि की दर से बढ़ा। इसी अवधि के दौरान गेंहू में 5.1% की वृद्धि हुई। बाजरा में 8% की वृद्धि हुई, क्योंकि सरकार बाजरा को बढ़ावा दे रही है।
- सामान्यतः एमएसपी में वृद्धि से किसानों को अधिक बाजरा उगाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 2011-12 और 2021.22 के बीच बाजरा के क्षेत्र में 24% की कमी देखी गई। गेंहू और धान की खेती बढ़ी। इस अवधि में सभी मोटे अनाजों को क्षेत्र घटा। इससे पता चलता है कि किसान व्यावहारिक हैं।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 13 फरवरी, 2024