
नए बंदरगाह से देश को आर्थिक लाभ
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हाल ही में देश में विझिनजाम अंतरराष्ट्रीय ट्रांसशिपमेंट डीपवाटर मल्टीपर्पस सीपोर्ट शुरू किया गया है। इसे केरल सरकार के साथ सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल के तहत अदाणी पोर्टस एंड स्पेशल इकोनोमिक जोन लिमिटेड ने विकसित किया है। भारत के समुद्री इतिहास में यह एक मील का पत्थर है।
कुछ बिंदु –
- अभी तक भारत अपने इनबाउंड और आउटबाउंड ट्रांसशिपमेंट कार्गो का लगभग 75% संभालने के लिए विदेशी बंदरगाहों पर निर्भर है। इसके परिणामस्वरूप लगभग 20 करोड़ डॉलर के वार्षिक राजस्व की हानि होती है। अब यह लाभ में बदल सकती है।
- 20 मीटर का इसका प्राकृतिक ड्राफ्ट तथा यूरोप, पश्चिम एशिया एवं सुदूर पूर्व को जोड़ने वाले शिपिंग रूट से इसकी निकटता इसे ट्रांसशिपमेंट हब बनाते हैं।
- इस बंदरगाह पर अल्ट्रा-लार्ज यानि बहुत बड़े कंटेनर बर्थ कर सकते हैं। इससे लागत में बचत हो सकती है।
- यह बंदरगाह रिमोट-नियंत्रित क्रेन और एआई संचालित पोत यातायात प्रबंधन प्रणाली से लैस है। यह अर्ध-स्वचालित है। इससे टर्नअराउंड समय में कटौती होगी।
- पिछले वर्ष भारत की कंटेनर क्षमता लगभग 20 करोड़ टीईयूएस थी। जबकि चीन की 330 करोड़ टीईयूएस थी। इससे पता चलता है कि भारत को ऐसे बंदरगाहों की कितनी आवश्यकता है।
- अब सरकार को चाहिए कि इस बंदरगाह तक के रेल और सड़क संपर्क को समय से पूरा करे। इससे दक्षिण भारत के पूरे भीतरी क्षेत्रों में कुशल कार्गो डिलीवरी की सुविधा होगी।
- इसके बाद के विकास-चरण के लिए आंध्र और केरल सरकार ने 2025 तक लगभग 9500 करोड़ रुपये के निवेश से जुड़े समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इसे तुरंत लागू किया जाना चाहिए।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 06 मई, 2025