
नगर निकायों को वित्त और शक्ति समृद्ध बनाने की जरुरत
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नगर निकायों को सरकार का तीसरा स्तर कहा जाता है। सड़क, पानी, सीवर, स्कूल, क्लीनिक उनके मूलभूत जनादेश हैं। लेकिन एक के बाद एक उनकी शक्तियों पर अंकुश लगाया जाता है। भारत के नगर और उनसे जुड़े निकायों की वास्तविकता पर कुछ बिंदु –
- शहरों में एक तिहाई से अधिक लोग रहते हैं।
- जीडीपी का लगभग दो तिहाई हिस्सा यहीं से आता है।
- आरबीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, निकायों की राजस्व प्राप्तियां सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.6% हैं।
- नगरपालिका का सबसे बड़ा राजस्व स्रोत सम्पति-कर होता है।
- जीएसटी के बाद मनोरंजन कर और चुंगी करों के नुकसान ने निकायों को राज्य और केंद्र सरकार की दया पर छोड़ दिया है।
- शहरों के बढ़ने के साथ उनकी वित्तीय जरूरतें भी बढ़ेंगी। ऐसे में बॉन्ड का विचार अच्छा हो सकता है। अमेरिकी नगरों में इसका नियमित रूप से उपयोग होता है। वहाँ का नगरपालिका बॉन्ड बाजार 4 खरब डॉलर का है।
- इसी प्रकार से लंदन और पेरिस भी निकायों को गंभीरता से लेते हैं। उनके महापौरों के पास वास्तविक शक्तियां हैं।
- केंद्र व राज्य सरकारों को नगर निकायों को सशक्त बनाने पर ध्यान देना ही चाहिए। इसके साथ ही, निकायों को भी अपने खातों को अधिक पारदर्शी बनाना चाहिए। इससे उनकी समस्याएं जल्दी सुलझेंगी।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 10 फरवरी, 2025
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