महाद्विपीय परिवर्तन में यूरोपीय संघ के साथ साझेदारी
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हाल ही में भारत और यूरोपीय संघ ने भारत व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद् या ईयू-इंडिया ट्रेड एण्ड टेक्नॉलॉजी काउंसिल या टीटीसी की स्थापना की घोषणा की है। इसने भारत और यूरोपीय संघ के संबंधों को एक आयाम प्रदान किया है।
कुछ बिंदु –
- यूं तो भारत के यूरोपीय संघ के कई देशों के साथ मजबूत द्विपक्षीय संबंध हैं, लेकिन उसे यूरोपीय संघ के साथ समग्र साझेदारी के रूप में नहीं देखा जा सकता था। अब यह संभव हो गया है।
- व्यापार, प्रौद्योगिकी और सुरक्षा; इस समझौते के आधार स्तंभ हैं। ये क्षेत्रीय स्तर पर चलाए जा सकेंगे।
- जलवायु परिवर्तन से निपटना और नेटजीरो अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ना ही इस समझौते के मुख्य चालक होंगे।
विकास, नवाचार और वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी की लागत को कम करने के लिए भारत एक महत्वपूर्ण भागीदार हो सकता है। साथ ही यह बैटरी, हाइड्रोजन और ऊर्जा सुरक्षा जैसे निम्न कार्बन अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी विकसित कर सकता है।
- इस परिषद् के माध्यम से लचीली आपूर्ति श्रृंखलाओं का विस्तार करने के लिए सहभागिता पर काम करने की उम्मीद की जा सकती है।
भारत-यूरोपीय संघ की साझेदारी का इतिहास बहुत सुखद नहीं रहा है। फिलहाल, रूस के यूक्रेन पर आक्रमण और चीन के साथ उसकी मैत्री ने यूरोपीय संघ को भारत से मैत्री करने के लिए उत्सुक किया है। हालांकि, परंपरागत रूप से देखें, तो दोनों में समानता है। दोनों की साझेदारी से परस्पर लाभ की संभावना है।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 27 अप्रैल, 2022