महापौर को शक्तिशाली बनाने की जरुरत है
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देश के प्रशासन में स्थानीय निकायों की महत्वपूर्ण भागीदारी हो सकती है। तमाम देशों के ऐसे उदाहरण हैं, जहाँ मेयर स्थानीय मुद्दों, सार्वजनिक भागीदारी और रचनात्मकताए नवाचार और सहयोग के साथ बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। भारत में स्थिति कुछ अलग है।
कुछ बिंदु –
- 1992 के 74वें संविधान संशोधन अधिनियम (सीएए) के बावजूदए देश के मेयर या महापौर स्थानीय निकायों की क्षमता और प्रभावशीलता को बढ़ाने में असफल रहे हैं।
- इसका कारण है कि राज्य सरकारें सत्ता हस्तांतरण का दिखावा भर करती हैं। वास्तव में महापौर शक्तिहीन ही हैं।
- उनके कार्यकाल या चुनाव में कोई एकरूपता नहीं है।
- उनकी भूमिका निधियों और जिम्मेदारियों पर न्यूनतम नियंत्रण के साथ औपचारिक पदों तक सीमित हो गई है।
- दिल्ली जैसे नगर निगम भी औसत से नीचे काम कर रहे हैं।
- स्थानीय सरकारों में नियोजन क्षमताए पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी है। संसाधन की कमी है।
- व्यवहार में, शहरों का प्रबंधन अक्सर जिला मजिस्ट्रेट और कमिश्नर ही करते हैं। इनका ध्यान शहरी नियोजन की दीर्घकालिक आवश्यकताओं के साथ तालमेल नहीं बैठा पाता है।
- महापौरों को सशक्त बनाकर ही सार्वजनिक स्वास्थ्य से लेकर जलवायु परिवर्तन के गंभीर स्थानीय मुद्दों से निपटा जा सकता है।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 15 नवंबर, 2024
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