मध्यान्ह भोजन से जुड़ी कुछ वास्तविकताएं
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- स्कूलों में चलाई जा रही इस योजना के लिए अधिकतर महिलाएं ही खाना बनाती हैं।
- एक अध्ययन इस योजना को 2006 से 2016 के बीच बच्चों की ऊँचाई में आए 13-32% के सुधार से जोड़ता है।
- अंतर पीढ़ीगत डेटा से यह भी पता चलता है कि दिन में संतुलित भोजन करने वाली बालिकाएं, आगे चलकर स्वस्थ शिशुओं को जन्म दे पाती हैं।
- इस योजना के इतना महत्वपूर्ण होने के बावजूद इसके रसोइयों को 15 वर्ष से प्रतिमाह हजार रुपए दिए जा रहे हैं।
- मानदेय को केंद्र और राज्य के बीच 60 : 40 अनुपात में साझा किया जाता है। जब राज्य भुगतान बढ़ाने का विकल्प नहीं चुनते हैं, तो केंद्र प्रत्येक रसोइये के लिए 600 रु. ही देता है।
- भारत में महिलाओं की कार्यबल भागीदारी पहले से ही बहुत कम है। अधिकांश अवैतनिक कार्यों में उन्हें ही लगाया जाता है। आंगनबाड़ी और आशा कार्यकर्ता महिलाएं हमेशा से ही उचित वेतन की मांग करती रही हैं।
सरकार को इसे सुधारने की कोशिश करनी चाहिए, अन्यथा स्त्री-पुरूष के बीच वैतनिक अंतर रखना न केवल महिलाओं की समानता पर, बल्कि भारत के भविष्य पर भी उंगली उठाता है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर अधारित। 5 दिसंबर, 2024
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