लोक अदालतों में न्याय की गुणवत्ता पर भी ध्यान हो
Date:03-05-21 To Download Click Here.
हमारी न्यायिक व्यवस्था, गरीबों को उचित न्याय उपलब्ध कराने की संवैधानिक प्रतिबद्धता रखती है। इस लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए लोक अदालतों का गठन किया गया था। इसका उद्देश्य न्यायालयों में लंबित मामलों के ढेर को देखते हुए जरूरतमंदों को वहन योग्य और त्वरित न्याय दिलवाना रहा है।
लोक अदालतों से जुड़ा रोचक और महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इनके वैधानिक गठन से पहले भी इनका अस्तित्व रहा है। 1949 में महात्मा गांधी के एक शिष्य, हरिवल्लभ पारिख ने रंगपुर, गुजरात में इसको शुरू किया था। 42वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम 1976 में अनुच्छेद 39ए जोड़कर ‘समान न्याय और निशुल्क न्यायिक सहायता’ को सुनिश्चित किया गया था। तत्पश्चात् न्यायिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 लाया गया, और यह 1995 में सक्रिय हुआ। इसके माध्यम से समाज के कमजोर वर्ग को निःशुल्क और उत्तम न्यायिक सेवा प्रदान करना सुनिश्चित किया गया था। इसके लिए लोक अदालतों का गठन किया गया।
लोक अदालतों से जुड़ी कुछ बातें –
- विवादों के निपटारे के लिए न्यायलयों के विकल्प के रूप में लोकअदालतों की बैठकें नियमित रूप से की जाती रही हैं। वाहन दुर्घटना, सार्वजनिक सुविधा से जुड़े विवाद, चेक बाउंस के मामले, भूमि, श्रम और वैवाहिक मामलों को अक्सर लोक अदालतों में निपटाने का प्रयत्न किया जाता है।
- नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी (नालसा) के आँकड़ों के अनुसार 2016 से 2020 तक 52 लाख से भी अधिक मामलों को लोक अदालतों में निपटाया गया है। इसी प्रकार से नेशलन लोक अदालत की देश भर में संपन्न बैठकों में एक दिन में ही अनेकों मामले सुलझाए गए हैं।
- लोक अदालतों में दोनों पार्टियों को त्वरित न्याय की सुविधा दी जाती है। इसकी प्रक्रिया में लचीलापन है। इसमें सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 जैसी न्यायिक कानूनों की कोई कड़ाई नहीं की जाती है। यह आर्थिक रूप से सरल है, क्योंकि कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। अंतिम न्याय प्राप्त होता है, क्योंकि इसके बाद अपील की सुविधा नहीं है। इसके द्वारा दिए गए निर्णयों को सिविल कोर्ट की डिक्री के समकक्ष माना जाता है।
कुछ कमियां और समाधान
- महामारी के चलते लोक अदालतों में आई रुकावट के मद्देनजर हाल ही में पहली राष्ट्रीय ई-लोक अदालत की बैठक की गई थी। इसमें 10 लाख से अधिक मामलों का निपटारा किया गया। ई-अदालत में स्पष्ट रूप से कम मामले निपटाए जा सके, परंतु निकट भविष्य में ई-अदालतों से जुड़े मसौदे के तीसरे चरण को अमल में लाया जाएगा। इससे इनकी क्षमता को बढ़ाया जा सकेगा।
- लोक अदालतों में मामला निपटाने की गति तेज करने के लालच में न्याय की गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ता है।
- लोक अदालतों का मुख्य उद्देश्य समझौता कराना होता है। इस फेर में कई बार वादियों को हर्जाने की बड़ी रकम देनी पड़ जाती है। इंश्योरेंस, बैंक, बिजली विभाग आदि को उनके बकाए की बड़ी रकमें छोडनी पड़ती हैं। बहुत से मामलों में समझौते का भार निर्धन व्यक्ति पर डाल दिया जाता है, जो उसे मजबूरी में स्वीकार करना पड़ता है।
- पारिवारिक अदालतों में सद्भाव का जिम्मा महिलाओं पर डालते हुए समझौता करवा दिया जाता है।
38 वर्षों से काम करती लोक अदालतों का उद्देश्य अततः न्याय करना ही होना चाहिए। उम्मीद की जाती है कि महामारी के दौर में भी ई अदालतों के माध्यम से जन-जन तक न्याय पहुँचता रहेगा।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित फैजान मुस्तफा और उत्कर्ष लियो के लेख पर आधारित। 8 अप्रैल, 2021