
लैंगिक रूढिवादिता और भेदभाव पर शीर्ष न्यायालय का मोर्चा
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हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने लैंगिक भेदभाव को खत्म करने संबंधी एक निर्णय दिया है।
मुख्य बिंदु –
- न्यायालय ने अपने इस निर्णय से संदेश दिया है कि कार्यबल में अधिक महिलाओं के प्रवेश के लिए सक्षम वातावरण बनाना होगा।
- इस निर्णय से न्यायालय ने यह मंशा दिखाई है कि अधिक से अधिक महिलाओं को न्यायिक सेवा के साथ-साथ विधायिका और कार्यपालिका में भी समान महत्व दिया जाना चाहिए।
- यह निर्णय न्यायमूर्ति नागरत्ना ने मध्यप्रदेश की दो सिविल जजों को हटाने से जुड़े मामले में दिया है। यही नहीं बल्कि पिछले कई फैसलों में न्यायालय ने लैंगिक रूढ़िवादिता और महिलाओं के खिलाफ भेदभाव पर ध्यान खींचा है।
- महिलाओं का अधिक प्रतिनिधित्व उनकी जरूरतों को बेहतर ढंग से समझने, और बेहतर नीतियां बनाने के लिए जरूरी है। न्यायमूर्ति ने यह भी कहा कि गर्भावस्था और मातृत्व के दौरान भेदभाव से मुक्ति या कानूनों का समान संरक्षण महिला कार्यबल के अधिकार हैं।
ऐसा करके न्यायलय ने सत्ता में बैठे लोगों के साथ-साथ पूरे समाज को याद दिलाया है कि विकसित अर्थव्यवस्था की आकांक्षा रखने वाले देश में सदियों पुरानी पितृ सत्तात्मक पूर्वाग्रहों का कोई स्थान नहीं है।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 3 मार्च 2025