काबुल से अमेरिकी सेना की वापसी और भारत की स्थिति

Afeias
06 May 2021
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Date:06-05-21

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हाल ही में अमेरिकी सरकार ने अफगानिस्तान से अपनी सेना की वापसी की घोषणा की है। अनेक अमेरिकी सैनिकों की मौत और लगभग 2 खरब डॉलर के व्यय के बाद लिया गया अमेरिकी सरकार का यह निर्णय स्वागतयोग्य कहा जा रहा है।

अमेरिका के इस कदम से भारत के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। अफगानिस्तान के आतंकी संगठन तालिबान और भारत में आतंक फैलाने वाले समूहों में एक प्रकार की आपसी सहमति है। गौरतलब है कि 1999 में भारतीय विमान का अपहरण करने वाले आतंकियों की तालिबान से सांठगांठ थी। अमेरिका के पीछे हटने से अब अफगानिस्तान को एक बार फिर से आतंकियों द्वारा अपनी शरणस्थली बना लेने का खतरा पैदा हो गया है।

भारत के पास सीमित विकल्प हैं, और उसे इन्हीं के साथ सर्वश्रेष्ठ करना है। दूरसंचार और तेज गति वाले विमानों की मदद से भौतिक दूरी को काफी हद तक पार करने के बाद भी भूगोल मायने रखता है। नतीजतन भारत, अफगानिस्तान में अपने हितों की रक्षा के लिए स्वयं को एक अलग लाभरहित पाकिस्तान में रूप में देखेगा। इस बिंदु पर यह स्पष्ट करना जरूरी है कि भारत ने पाकिस्तान की तरह कभी भी तालिबान के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध नहीं रखे हैं।

इन स्पष्ट सीमाओं के बावजूद, भारत पूरी तरह से विकल्पों से परे नहीं है। तालिबान के बाद के समय में अफगानिस्तान में भारत ने अनेक स्तर पर विकास कार्य किए हैं, और इसके चलते कहाँ की जनता के बीच भारत के प्रति सद्भावना है। इस आधार पर अपने मौजूदा संबंधों को मजबूत करने के लिए, अमेरिकी सेना की वापसी के दौर में तालिबान की गतिविधियों पर उसे कड़ी नजर रखनी चाहिए।

एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह भी उठता है कि क्या सेना की वापसी के बाद भी अमेरिका, काबुल सरकार और जनता की मदद करके तालिबान को नियंत्रण में रख सकेगा ?

तालिबान ने कभी भी शांतिपूर्ण समझौतों में कोई रुचि नहीं दिखाई है। भारत और पाकिस्तान की अफगानिस्तान से भौगोलिक नजदीकी है, और ये दोनों उसकी स्थितियों से अप्रभावित नहीं रह सकते। चूंकि भारत, दोहा वार्ता का समर्थक नहीं रहा है, इसलिए तालिबान समर्थित लश्कर-ए-तैयबा जैसे आंतकी समूहों का एक बार फिर सिर उठाने का खतरा बना हुआ है। भारत के पास इस समस्या का शायद ही कोई रामबाण उपाय है। फिलहाल 11 सितम्बर और उसके बाद, क्षेत्र में चल रही गतिविधियों और उनके बदलाव पर नजर रखना ही फिलहाल एकमात्र हल है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित सुमित गांगुली के लेख पर आधारित। 16 अप्रैल, 2021