कांवड़ यात्रा में भोजनालयों पर नाम प्रदर्शित करने का विवाद
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हाल ही में कांवड़ यात्रा के रास्तों में पड़ने वाले भोजनालयों पर नाम प्रदर्शित करने का निर्देंश निकाला गया था। उत्तराखंड , उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश ने ऐसे निर्देश दिए थे। इस पर उच्चतम न्यायालय ने रोक लगा दी है। न्यायालय के इस अंतरिम आदेश से मालिक और तीर्थयात्री दोनों को राहत मिली है।
इससे जुड़े कुछ बिंदु –
- याचिकाकरर्ताओं ने तर्क दिया था कि लोग मेनू के आधार पर किसी रेस्तरां का चुनाव करते हैं। बनाने और परोसने वाले की जाति या धर्म को उजागर करने की मांग ‘अस्पृश्यता’ को बढ़ावा देने वाली है। न्यायालय ने भी इसका समर्थन करते हुए कहा कि भोजन के लिए एवं अन्यथा भी ‘सुरक्षा -मानक और धर्म- निरपेक्षता’ अधिक महत्व रखती है।
- राज्य सरकारों के आदेश से अनेक मुस्लिम कर्मचारियों के सिर पर बेरोजगारी की तलवार लटक गई थी। मालिकों को भी कर्मचारियों की कमी से परेशान होना पड़ा था।
- कांवड़ यात्रा के लंबे 240 कि. मी. मार्ग पर स्थित दुकानों और व्यवसायों के लिए यह लाभ और आजीविका का अच्छा समय होता है। इस दौरान किसी एक खास वर्ग को इस लाभ से वंचित करना अनुचित है।
- कई कांवड़ियों ने भी निर्देश की आलोचना की थी। इस तरह की सामुदायिक गतिविधियों में साथियों का दबाव बहुत बड़ा होता है। एक समूह से अलग कोई कांवड़िया जाना नहीं चाहता है। यह भाईचारा आगे चुनावों को भी प्रभावित करता है।
राज्य सरकारों का निर्देश खराब शासन और खराब राजनीति की ओर इशारा करते हैं।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 23 जुलाई, 2024
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