जातिगत जनगणना-पक्ष एवं विपक्ष

Afeias
18 Oct 2021
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Date:18-10-21

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हाल ही में देश के अनेक राजनीतिक दल जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं। उनके विचार में भले ही यह सटीक न हो, परंतु इससे प्राप्त डेटा सामाजिक नीति को चलाने के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है। यह विचार सामाजिक समानता की हमारी घोषित नीति के लिए घृणित हो सकता है, क्योंकि हमारा उद्देश्य तो जातिविहीन समाज के लिए प्रयास करना है। फिर भी अनेक दृष्टि से इसके पक्ष-विपक्ष पर विचार किया जाना चाहिए।

  • एक राष्ट्रीय जाति जनगणना के माध्यम से जाति आधारित सकारात्मक कार्यक्रमों के लिए सांख्यिकीय औचित्य संरक्षित किया जा सकता है।
  • आरक्षण के मौजूदा स्तरों का समर्थन करने के लिए न्यायालयों को ‘मात्रात्मक डेटा’ चाहिए, जो इस जनगणना से प्राप्त हो सकता है।
  • कुछ राजनीतिक दल (जाति आधारित) सामाजिक समूहों में अपनी बढ़त को उपयोगी पा सकते हैं।

या जनगणना में उनके पसंदीदा समूह विशिष्ट की गणना कम होने पर वे उसे असुविधाजनक भी पा सकते हैं। इससे उनके चुनावी परिणामों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

  • सरकार के इस जनगणना के प्रति उत्साह न दिखाने के पीछे कुछ कारण हैं।
  1. सरकार का नीतिगत निर्णय यही है कि जनगणना नियमित ही होनी चाहिए।
  2. सरकार को आशंका है कि चूंकि यह नीति से परे होगा, इसलिए प्रशासनिक स्तर पर यह कहीं इतनी जटिल न बन जाए कि नियमित जनगणना को भी खतरे में डाल दे।
  3. यह कार्य जातियों की सटीक गणना प्राप्त करने में निहित कठिनाइयों और जटिलताओं का हवाला देता है। जातियों और उपजातियों की गणना में ध्वन्यात्मक विविधताओं और समानताओं को देखते हुए यह दुष्कर हो जाता है।

पूर्व के अनुभव क्या कहते हैं ?

  • 2011 में सामाजिक-आर्थिक जनगणना के आंकड़ों में कई कमजोरियों के चलते इसका उपयोग नहीं किया जा सका।
  • 1931 की जनगणना में भी एकत्रित किए गए जाति विवरण, पूर्ण और सटीक नहीं थे। डेटा में 46 लाख जातियों के नाम थे, और यदि उपजातियों पर विचार किया जाता, तो अंतिम संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी होती।

क्या किया जा सकता है ?

  • जाति जनगणना का मतलब जनगणना में जाति का होना जरूरी नहीं है। यह एक स्वतंत्र कार्यक्रम हो सकता है।
  • जनसंख्या में मौजूद सभी संप्रदायों और उपजातियों को स्थापित करने के लिए राज्य और जिला स्तर पर सामाजिक मानवशास्त्रीय अध्ययन किया जा सकता है। इन्हें जाति के नामों के तहत किया जा सकता है। इसके बाद पिछड़े वर्ग (बीसी)। अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) सूची में पाई जाने वाले जाति समूह को क्षेत्रगत सर्वे में चिन्हित किया जा सकता है।

जातिगत जनगणना हेतु पर्याप्त विचार और तैयारी की आवश्यकता होती है। यदि इसका लक्ष्य राजनीतिक या चुनावी उद्देश्यों के लिए नहीं, बल्कि अवसरों के वितरण में समानता के लिए है, तो भले ही यह पूरी तरह से निर्दोंष न हो, लेकिन अंतरिम रूप से उपयोगी हो सकता है।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 25 सितंबर, 2021