हैलो ताइवान

Afeias
20 Oct 2021
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Date:20-10-21

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आधिकारिक तौर पर चीन का गणराज्य कहे जाने वाले ताइवान ने अलग पहचान बनाए रखी है, और यह एक सफल बहुदलीय लोकतंत्र के रूप में विकसित हुआ है। जब से वर्तमान डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी ताइवान की सत्ता में आई है, उसने चीन के ‘वन चाइना’ फॉर्मूलेशन को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है। इसके चलते चीन ने द्वीप पर सैन्य, राजनयिक और आर्थिक दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया है। ताइवान को डराने के लिए चीन ने घुसपैठ भी शुरू कर दी है।

इस अर्थ में ताइवान और भारत ऐसे लोकतांत्रिक राज्य बन गए हैं, जो चीन की आक्रामकता का समान स्तर पर सामना कर रहे हैं।

दोनों ही देश, चौतरफा संघर्ष को भड़काने और डराने के लिए चलाई गई चीन की ग्रे-जोन रणनीति का शिकार हो रहे हैं। इस नाते भारत और ताइवान को अपने संबंधों की नजदीकी को बढ़ाना चाहिए।

वास्तव में, ताइवान की नई दक्षिण नीति भारत सहित दक्षिण और दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के साथ संबंधों को बढ़ाने की रही है। चीन की संवेदनशीलता को देखते हुए ताइवान के साथ संबंधों में भारतीय पक्ष अभी सतर्क है, और धीमी गति से आगे बढ़ रहा है।

ताइवान के साथ संबंधों को मजबूत करने में भारत के हित-

  • ताइवान एक सेमीकंडक्टर पावर हाउस है। दोनों देशों के बीच चिप विनिर्माण को लेकर द्विपक्षीय वार्ता चल रही है।
  • हरित प्रौद्योगिकी, आई टी, डिजीटल क्षेत्र और टेलीकॉम में भी बहुत सहयोग प्राप्त किया जा सकता है।
  • चीन से परिचालित ताइवान की कंपनियों को नए स्थान की तलाश है। यह मौका उन्हें भारत दे सकता है।
  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामकता से निपटने के लिए भारत और ताइवान के बीच सामरिक समझौतों का बहुत महत्व होगा।

भारत को ‘वन चाइना’ नीति के प्रति अपनी दृष्टि की समीक्षा करते हुए ताइवान के साथ संबंधों को आगे बढ़ाने पर विचार करना चाहिए।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 5 अक्टूबर, 2021

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