जनसंख्यिकीय लाभांश की चुनौती के लाभ को न गवाएं
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भारत अभी जनसांख्यिकी लाभांश की स्थिति में है। समय रहते इसका लाभ उठाया जाना चाहिए। भारत की तीन-चौथाई आबादी 15-64 वर्ष की आयु की है। यह स्थिति हमेशा नहीं रहने वाली है।
कुछ बिंदु –
- भारत की कुल प्रजनन दर एक दशक पहले की तुलना में अधिक तेजी से घट रही है।
- एक अनुमान के अनुसार 10 वर्षों के भीतर, कुल आबादी में कामकाजी उम्र के व्यक्तियों का अनुपात गिरना शुरू हो जाएगा।
- अधिकांश राज्य अब 2.1 बच्चे प्रति महिला के प्रतिस्थापन स्तर प्रजनन दर से नीचे हैं। आंध्रप्रदेश और कर्नाटक जैसे दक्षिणी राज्य की कुल प्रजनन दर 1.75 से नीचे है। पंजाब और प.बंगाल सहित अन्य राज्य भी ऐसी ही गिरावट देख रहे हैं।
- यह गिरावट शिक्षा और आय में थोड़ी प्रगति का संकेत भी देती है। इसके बावजूद भारत अभी निम्न मध्यम आय वाले देशों में ही स्थान रखता है।
- प्रजनन दर में तो गिरावट तेजी से हो रही है, लेकिन उस गति से हम कामकाजी वर्ग की उत्पादकता को नहीं बढ़ा पा रहे हैं। 2010 में प्रजनन दर जहाँ 2.6 थी, वह आज 1.99 पर है। लेकिन कम उत्पादकता वाले कृषि कर्म में आज भी 46% श्रम लगा हुआ है (पहले यह 63% था)। वहीं चीन ने उदारीकरण के 30 सालों में कृषि श्रमिकों की हिस्सेदारी को 70% से घटाकर 38% कर लिया है। शहरी क्षेत्रों में हमारी श्रम-शक्ति भागीदारी दर 50% पर बनी हुई है।
समाधान के रूप में विनिर्माण –
- आर्थिक विकास के लिए कृषि जैसे कम उत्पादकता वाले क्षेत्रों से विनिर्माण और सेवाओं में उच्च उत्पादकता वाली नौकरियों में श्रमशक्ति का स्थानांतरण किया जाना चाहिए।
- सेवा क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, लेकिन विनिर्माण स्थिर रहा है।
- विनिर्माण के श्रम-गहन उद्योगों में, सेवाओं की तुलना में कहीं अधिक रोजगार सृजित होते हैं।
- कपड़ा जैसे उद्योगों में अक्सर 60-70% महिलाएं काम करती हैं। (फिलहाल कामकाजी आयु वर्ग की 10 में से 3 महिलाएं ही श्रम बल में है)
विनिर्माण में बाधाएं कहाँ हैं, और सरकार को क्या करना चाहिए –
- विश्व बैंक के सर्वेक्षणों के अनुसार, छह में से एक निर्माण को व्यवसाय लाइसेंसिंग और परमिट की प्रमुख बाधाएं आती है। जबकि वियतनाम में यह 3% से भी कम है।
- भूमि, सीमा शुल्क और व्यापार विनियमन के मुद्दों से 17% निर्माता परेशान हैं, जबकि वियतनाम में 3% निर्माता ही ऐसी परेशानी में हैं।
- भारत सरकार को चाहिए कि वह इनपुट सस्ता करके निर्यात को बढ़ावा दे।
- भारतीय उत्पादों के लिए बाजारों तक पहुँच का विस्तार हो।
- राज्य सरकारें श्रम सुधारों को गति दें।
- श्रमिकों को लचीली कार्य व्यवस्था चुनने की अनुमति हो।
- निवेश में वृद्धि की जानी चाहिए।
1980 के दशक में भारत के समान प्रति व्यक्ति आय के साथ, चीन ने लाखों लोगों को कृषि से विनिर्माण में स्थानांतरित किया है। भारत को भी जल्द ही इस ओर कदम उठाना चाहिए।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित हर्षित राखेजा और युवराज खेतान के लेख पर आधारित। 11 नवंबर, 2024
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