
जेल मेनिया का अंत किया जाना चाहिए
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- जमानत को एक सामान्य अधिकार के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए।
- जमानत को तभी खारिज किया जा सकता है। अगर न्यायालय को लगता है कि आरोपी आत्मसमर्पण करने में परेशान करेगा, अपराध कर सकता है या गवाहों पर अपना प्रभाव डाल सकता है।
- जमानत को सजा के रूप में अस्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।
इस कानून से वे सभी विशेष कानून खत्म हो जाएंगे, जो जमानत हासिल करने कठिन बनाते हैं। इससे आपराधिक प्रक्रिया की पवित्रता को बनाए रखा जा सकेगा। न्यायालय की सिफारिशों के अनुसार ही इस कानून में सरल प्रक्रियाओं का प्रावधान होना चाहिए। अति प्रभावी अभियोजकों और जांच एजेंसियों पर लगाम लगाना चाहिए। जमानत आवेदनों पर निर्णय लेने में न्यायिक विवेक की विसंगतियों को दूर करना चाहिए। और जमानत-आवेदनों को नियमित रूप से अस्वीकार करने वाले न्यायाधीशों की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट लाई जानी चाहिए। ऐसा होने पर जमानत-आवेदनों की सुनवाई और जमानत देने के लिए सुप्रीम कोर्ट पर हमारी निर्भरता कम हो जाएगी।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित नेहा सिंघल और नवीद महमूद अहमद के लेख पर आधारित। 22 जुलाई 2022