हरियाणा सरकार का विपरीत कदम
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हरियाणा सरकार ने राज्य रोजगार अधिनियम के द्वारा निजी क्षेत्र में 75% नौकरियों को स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित करने का कानून बनाया है। राज्य सरकार का यह कानून राज्य की आर्थिक संभावनाओं के लिए तो दुर्भाग्यपूर्ण है ही, संवैधानिक रूप से भी गलत लगता है। कुछ बिंदुओं के आधार पर इसे समझा जाना चाहिए –
- यह जन्मस्थान से परे (अनुच्छेद 14), सार्वजनिक रोजगार में भेदभाव के खिलाफ (अनुच्छेद 15), और पूरे भारत में सभी नागरिकों के लिए स्वतंत्र आवागमन (अनुच्छेद 19) के संविधान द्वारा प्रदत्त समानता के अधिकार को कमजोर करता है।
- चारू खुराना बनाम भारत संघ मामले से यह स्थापित किया जा चुका है कि अधिवास (अहर्ता प्राप्त करने के लिए एक व्यक्ति को राज्य में कम से कम 15 वर्षों तक रहना चाहिए) का उपयोग रोजगार पर रोक लगाने के लिए नहीं किया जा सकता है। लोगों की मुक्त आवाजाही, व्यापार और उद्योग में सर्वश्रेष्ठ कौशलयुक्त प्रतिभाओं को काम पर रखने की अनुमति देती है।
- जहाँ एक ओर केंद्र सरकार अंतर-राज्जीय आवागमन को आसान बनाने और बढ़ावा देने के लिए श्रम-संहिता में सामाजिक सुरक्षा लाभ का प्रावधान, एक राष्ट्र-एक राशन कार्ड, एकीकृत बाजार बनाने के लिए जीएसटी जैसी नीतियों के क्रियान्वयन के लिए प्रयासरत है, वहां राज्य सरकार का यह कदम स्वार्थ प्रेरित व प्रगति विरूद्ध कहा जा सकता है।
‘बाहरी’ प्रतिभाओं के लिए दरवाजे बंद करने से राज्य की अर्थव्यवस्था पर ऐसा प्रभाव पड़ सकता है, जो हरियाणा के हित में नहीं होगा। अतः राज्य सरकार को अपने इस कानून की पुनर्विवेचना पर विचार करना चाहिए।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 5 फरवरी, 2022
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