‘हरित’ मानदंडों के लिए यूरोपियन यूनियन का अनुपयुक्त कदम
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हाल ही में यूरोपियन यूनियन ने अपने इकोडिजाइन निर्देंश में परिवर्तन किया है। इसने बिना बिके जूतों और कपड़ों को नष्ट करने पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसका उद्देश्य धारणीयता के लक्ष्य को लेकर चलना है।
कुछ बिंदु –
– यूरोपियन यूनियन का लक्ष्य भले ही अच्छा है, लेकिन इस निर्देश का प्रभाव भारत सहित अन्य एशियाई देशों पर पड़ेगा, जहाँ ये उत्पाद बनाए जाते हैं।
– कपड़ों के वितरण और रिटेलिंग के कारण 5% से भी कम उत्सर्जन होता है। लेकिन इनकी खपत कम होने का प्रभाव लाखों लोगों की आजीविका पर पड़ सकता है, क्योंकि फास्ट फैशन अतिउत्पादन को बढ़ावा देता आया है।
– यूरोपीय संघ का प्रतिबंध छोटे निर्यातकों के लिए नहीं है। लेकिन केवल इतना करने से इससे जुड़े व्यापार संबंधी विवादों को सुलझाया नहीं जा सकता है।
– चूंकि कपड़ा उद्योग में डिजाइन, वेरायटी, मार्केटिंग और रिटेलिंग की अपेक्षा श्रम और सामग्री की लागत कम है, इसलिए रिटेल चैन फैशन ब्रांड अधिक स्टॉक रखने में परहेज नहीं करते हैं। इसे पैमाने की अर्थव्यवस्था भी प्रोत्साहित करती हैं। इससे उत्पादन लागत और भी कम हो जाती है।
– दायरे की अर्थव्यवस्था में मात्रा के बजाय विविधता मायने रखती है। इससे भी लागत कम होती है। लेकिन इससे अनबिका स्टॉक बढ़ता है।
– कुल मिलाकर अनबिके उत्पादों को नष्ट करने या अपेक्षाकृत गरीब देशों को पुनः निर्यात करने पर प्रतिबंध लगाने से फास्ट फैशन बहुत अधिक प्रभावित होने वाला है। इससे ऑनलाइन बिक्री पर भी प्रभाव पड़ेगा।
इसके लिए यूरोपीय संघ को अपने व्यापारिक साझेदारों के साथ गहनता से काम करना चाहिए। इसी में सबका हित है।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 19 जून, 2024