ग्रीन कॉन्ट्रेक्ट्स या हरित अनुबंध

Afeias
07 May 2021
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Date:07-05-21

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जलवायु परिवर्तन के बारे में चिंताएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। इन स्थितियों में भारत को धारणीय विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रयास बढ़ाने की आवश्यकता है। सामाजिक और आर्थिक स्तर पर वस्तुओं और सेवाओं के बड़े पैमाने पर उत्पादन, उपभोग और निपटान से औद्योगिक जगत के अपने लाभ से इंकार नहीं किया जा सकता। परंतु इन सबने सीमित संसाधनों की पुनः पूर्ति के चक्र को धीमा कर दिया है।

इस मामले में उपभोक्ता और निगम दोनों ही बड़े पैमाने पर विनिर्माण और सेवाओं के लाभ को प्राप्त करते हैं। अतः दोनों को ही संसाधनों के नुकसान से संबंधित जिम्मेदारियों को समान रूप से साझा करते हुए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना चाहिए।

इस लेख में ग्रीन कॉन्ट्रैक्टिंग की प्रक्रिया के माध्यम से उत्सर्जन में कटौती करने के बारे में चर्चा की जा रही है।

ग्रीन कान्ट्रेक्ट्स क्या हैं ?

यह एक प्रकार का वाणिज्यिक अनुबंध है, जो अनुबंध करने वाले पक्ष उद्योग को डिजाइन, विनिर्माण, परिवहन, संचालन और अपशिष्ट निपटान सहित माल/सेवाओं की डिलीवरी जैसे विभिन्न स्तरों पर ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में कटौती करने को एक तरह से बाध्य करता है। ग्रीन कांट्रैक्ट लागू करने की प्रक्रिया में ग्रीन योग्यताओं को निर्धारित करते हुए ग्रीन टेंडर दिया जा सकता है।

अनुबंध करने वाले पक्षों को उत्सर्जन में कटौती करने के लिए एक प्रकार से दायित्व दिए जाते हैं।

अनुबंध में खण्ड जोड़ दिया जाता है, और पार्टी को उसकी शर्तों के अनुसार वस्तु/सेवा उत्पादन में अच्छी गुणवत्ता और ऊर्जा-कुशल बुनियादी ढांचे का निर्माण करना होता है।

इन शर्तों की जांच के लिए मानदंडों के आधार पर ऑडिट करवाया जाता है। प्रदर्शन में कमी के आधार पर दण्ड भी दिया जा सकता है।

अनुबंध की प्रभावशीलता, उद्योग और अनुबंध के प्रकार पर निर्भर करती है। इस दिशा में कोई अनिवार्य नियम न बनाए जाने से यह अधिक प्रभावशाली सिद्ध नहीं हो सका है।

कहा गया है कि हरित अनुबंधों को करने और निष्पादित करने में आर्थिक दक्षता को ध्यान में रखा जाना चाहिए। इसकी आर्थिक लागत अधिक हो सकती है, लेकिन बदलते परिवेश में पर्यावरण की गिरती स्थिति को दांव पर नहीं लगाया जा सकता।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित आराधना के लेख पर आधारित। 19 अप्रैल, 2021