ग्लासगो के संकल्प को निभाने की चुनौती

Afeias
18 Nov 2021
A+ A-

To Download Click Here.

हाल ही में ग्लासगो जलवायु सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री ने सक्रिय भूमिका निभाई है। इस कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज यानि कोप-26 की वार्ता में सभी अटकलों को विराम देते हुए प्रधानमंत्री ने 2070 तक भारत के नेट-जीरो लक्ष्य पर पहुँचने की घोषणा की है।

अन्य लक्ष्य –

प्रधानमंत्री ने भारत की इच्छा और सम्मेलन की महत्वाकांक्षा को प्रदर्शित करने वाले चार ऐसे प्रमुख लक्ष्यों की भी घोषणा की, जो निकट-अवधि में पूरे किए जा सकें –

  1. जिन लक्ष्यों को 2030 तक पूरा किया जाना है, उनमें 500 गीगावाट (450 गीगावाट लक्ष्य से ऊपर) की स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता शामिल है।
  1. बिजली की आवश्यकता का 50% अक्षय (रिन्यूएबल) स्रोतों के माध्यम से पूरा करना।
  1. 2020 और 2030 के बीच कुल अनुमानित संचयी कार्बन उत्सर्जन को 1 अरब टन कम करना।
  1. 2005 के स्तर से सकल घरेलू उत्पाद की कार्बन तीव्रता को 45% कम करना।

नए लक्ष्य कितने महत्वाकांक्षी –

  • भारत के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों का मतबल है कि 2030 से पहले कोयला-आधारित बिजली चरम पर होगी। इसके साथ ही भारत के लगभग 70% बिजली प्रतिष्ठान बैटरी और ग्रिड जैसे नवीकरणीय ऊर्जा पर आधारित होंगे। यह दुनिया भर के बिजली क्षेत्र में सबसे तेजी से होने वाले डीकार्बनाइजेशन में से एक होगा।
  • भारत का नेट-जीरो लक्ष्य भी समान रूप से महत्वाकांक्षी है। लेकिन भ्रम है कि यह लक्ष्य सभी ग्रीनहाउस गैसों के लिए है, या केवल कार्बन डाय आक्साइड के लिए है। दोनों ही स्थितियों में यह मजबूत संकेत देता है। जैसे-जैसे जीरो-कार्बन प्रौद्योगिकियां अधिक सुलभ होंगी, भारत बड़े पैमाने पर वैश्विक निवेश को आकर्षित करने के लिए इस लक्ष्य को अपडेट करेगा।

लक्ष्यों की पूर्ति हेतु घरेलू सुधार –

  1. अगर भारत को 500 गीगावॉट बिजली उत्पादन क्षमता हासिल करनी है, तो भारत को वैश्विक निवेश आकर्षित करने के लिए एक सक्षम वातावरण बनाना होगा। इस हेतु वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) में सुधार करना सबसे महत्वपूर्ण है।
  1. नवीकरणीय ऊर्जा के माध्यम से 50% बिजली आपूर्ति के लक्ष्य के लिए भारत के ग्रिड सम्बन्धी बुनियादी ढांचे को मजबूत करना होगा। बैटरी-भंडारण की क्षमता को बड़े पैमाने पर बढ़ाना होगा। इसके लिए स्मार्ट ग्रिड और बैटरी क्षेत्र में निवेश महत्वपूर्ण है।
  1. बिजली के नए बुनियादी ढांचे को चलाने के लिए एक विशाल कुशल कार्यबल की आवश्यकता होगी। इस हेतु भी निवेश किया जाना चाहिए।
  1. कोयला युग की असमान विकास चुनौतियों की विरासत को नवीकरणीय ऊर्जा और हरित ऊर्जा के नए युग में आगे नहीं ले जाने के लिए, ऊर्जा और औद्योगिक प्रणालियों में आए सभी परिवर्तनों को इस प्रकार से समानांतर रखा जाना चाहिए कि वे संक्रमण को न्यायोचित रखें।

असमान विकास –

नवीकरणीय ऊर्जा में बड़े पैमाने पर निवेश के कारण भारत का ऊर्जा भूगोल बदल जाएगा। आज के कोयला उत्पादक राज्य महाशक्ति नहीं रह जाएंगे। नवीकरणीय ऊर्जा का अधिकांश उत्पादन पश्चिमी और दक्षिणी राज्यों में किया जाएगा। इसलिए जैसे-जैसे गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा का हिस्सा बढ़ेगा, कोयला क्षेत्र गरीबी के जाल में फंसता चला जाएगा। नौकरी जाने और आय के अवसरों की अनिश्चितता से भारी सामाजिक अस्थिरता भी उत्पन्न हो सकती है।

इस संक्रमण से देश भर में लगभग 2 करोड़ से अधिक कर्मचारी प्रभावित होंगे। हमारे प्रमुख आर्थिक क्षेत्रों; जैसे- कोयला खनन, परिवहन, इस्पात, सीमेंट आदि में अनौपचारिक श्रमिकों की अत्यधिक उच्च संख्या चुनौतीपूर्ण है।

समाधान –

आने वाले दशकों में एक सुनियोजित और उचित प्रबंधन के माध्यम से चुनौतियों से बचा जा सकता है। इस संक्रमण दौर को पूरा करने के लिए हमारे पास 30 वर्ष हैं, परंतु प्रक्रिया अभी से शुरू होनी चाहिए। एक न्यायसंगत ऊर्जा संक्रमण-काल की योजना बनाना सरकार के विकास एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए एक स्मार्ट कदम होगा, जो सभी को लाभान्वित करेगा।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित श्रेष्ठा बनर्जी के लेख पर आधारित। 4 नवंबर, 2021

Subscribe Our Newsletter