गरीबी खत्म करने का ‘केरल मॉडल’ सराहनीय
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केरल राज्य की अनेक उपलब्धियां हैं। समाजिक और मानवीय विकास में उसका शानदार रिकार्ड है। स्वास्थ्य सेवाओं में वह विकसित देशों की बराबरी करता है। अपने 69वें स्थापना दिवस पर इस सूची में एक और उपलब्धि जोड़ ली है। यह अत्यधिक गरीबी या एक्सट्रीम पॉवर्टी को खत्म करने की उपलब्धि है। आखिर यह संभव कैसे हुआ –
- मई 2021 में दूसरी एलडीएफ सरकार ने एक्सट्रीम पॉवर्टी इराडिकेशन प्रोग्राम (ईपीईपी) शुरू किया था। इसके बाद सभी सरकारों ने केंद्रित विकास और विकेंद्रीकृत प्लानिंग पर लगातार काम किया।
- नीति आयोग के नेशनल मल्टीडाइमेंशन पावर्टी इंडेक्स (2023) में केरल को सबसे कम गरीब राज्य माना गया था। केरल की आबादी का सिर्फ 0.55% ही मल्टीडाइमेंशनल रूप से गरीब था। यह 14.96% के राष्ट्रीय औसत से बहुत कम है।
- दूसरे, अन्य राज्यों में सरकारें गरीबों को स्वयं एनरोल होने को कहती हैं। केरल में सरकार ने अत्यधिक गरीबों की पहचान करने के लिए 4 लाख कुशल कर्मियों को लगाया। इन्हें स्थानीय निकाय और कुदुम्बश्री वर्कर्स का भी सपोर्ट मिला।
- 64,0006 गरीब परिवारों की पहचान की गई। इनकी अलग-अलग जरूरतों के हिसाब से जरूरी मदद दी गई। यह पहचान भी खाना, स्वास्थ्य, आजीविका और आवास की उपलब्धता के आधार पर की गई।
राज्य सरकार ने ईपीईपी 2.0 की शुरूआत की है, ताकि गरीबी को दोबारा फैलने से रोका जा सके। ‘केरल मॉडल’ दिखता है कि सामाजिक सुरक्षा या धारणीयता से समझौता किए बिना भी प्रोग्रेसिव गवर्नेंस, कल्याण और विकास पर आधारित हो सकती है।
‘द हिंदू’ मे प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 4 नवंबर, 2025