यूरोप के साथ संबंधों की मजबूती
To Download Click Here.
हाल ही में प्रधानमंत्री ने यूरोप के देशों की यात्रा की है, जिसमें फ्रांस और जर्मनी का इस प्रकार का यह उनका दूसरा दौरा था।
फ्रांस और भारत के रिश्तों की मिठास –
- दोनों देशों के बीच दशकों से एक लाभदायक साझेदारी रही है। दोनों में से किसी ने भी अन्य पक्षों को अपने संबंधों में भूमिका निभाने की अनुमति नहीं दी है। यह उनकी मजबूत रक्षा साझेदारी का आधार रहा है।
- सन् 1998 में फ्रांस ने भारत के परमाणु परीक्षणों के परिणामस्वरूप उस पर किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं लगाया था।
- सन् 2008 में परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह द्वारा भारत को परमाणु ईंधन और तकनीक के उपयोग की छूट मिलने के बाद, असैन्य परमाणु सहयोग करने वाला पहला देश फ्रांस ही था।
- महाराष्ट्र के जैतापुर में छह परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के लिए फ्रांस के साथ समझौता हुए 12 वर्ष हो चुके हैं। उम्मीद है कि इस पर काम आगे बढ़ सकेगा।
- दोनों देशों ने पेरिस जलवायु समझौते की सफलता के लिए मिलकर काम किया है। इसी कड़ी में 2015 में अंतरराष्ट्रीय सौर ऊर्जा गठबंधन की सह-स्थापना की गई थी। यूरोप और एशिया के बाजारों तक इसे पहुंचाने के लिए एकीकृत आपूर्ति श्रृंखला हेतु एक औद्योगिक साझेदारी की गई है।
- इस दौरे में अंतरिक्ष के मुद्दों पर एक द्विपक्षीय रणनीतिक वार्ता भी हुई है, जो इस क्षेत्र में छह दशक लंबी साझेदारी का निर्माण करेगी।
- फ्रांस ने भारत को सबसे कमजोर देशों में फूड एण्ड एग्रीकल्चर रेसीलियेन्स मिशन (एफएआरएम) पहल पर सहयोग करने के लिए आमंत्रित किया है। इस पहल में भारत से गेंहू की आपूर्ति की आशा की जा रही है।
फ्रांस के साथ द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर व्यापक चर्चा के अलावा नॉर्डिक शिखर सम्मेलन में भी प्रधानमंत्री की भागीदारी रही। बर्लिन और कोपेनहेगन में यात्रा के दौरान जलवायु परिवर्तन एक प्रमुख मुद्दा था।
एक ही दौरे में जर्मनी और फ्रांस की एक साथ यात्रा करके प्रधानमंत्री ने यूरोप के साथ भारत के संबंधों के महत्व को नई ऊंचाइयां प्रदान की है। आने वाले समय में इसके सकारात्मक परिणाम की उम्मीद की जा सकती है।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 7 मई, 2022
Related Articles
×