एक विश्व, सार्वभौमिक स्वास्थ्य

Afeias
27 Jun 2023
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केंदीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया का कहना है कि डिजिटल स्वास्थ्य की रोमांचक दुनिया छोटे-छोटे लेकिन शक्तिशाली पायलटों और उप-क्षेत्रों में नवाचार से भरी हुई है। इनमें कुछ स्मार्ट वियरेबल इंटरनेट ऑफ थिंग्स, वर्चुअल केयर, रिमोट मॉनिटरिंग, बिग डेटा एनालिटिक्स, डेटा एक्सचेंज स्टोरेज और रिमोट डेटा कैप्चर को सक्षम करने वाले टूल हैं। लेकिन एकीकृत वैश्विक दृष्टि के बिना यह सब बिखरा हुआ है।

डिजिटल उपकरण से सार्वभौमिक कल्याण की ओर भारत –

भारत ने कोविन और ई-संजीवनी जैसे प्लेटफॉर्म से वैक्सीन और स्वास्थ्य सेवाओं की डिलीवरी में परिवर्तनकारी सफलता अर्जित की है। डिजिटल रूप से सक्षम कोविड वॉर रूम ने रियल टाइम डेटा एक्सचेंज के माध्यम से नीतिगत निर्णय लेने में मदद की थी।

सार्वजनिक स्वास्थ्य में डिजिटल उपकरणों की क्षमता का पूरा उपयोग करने के लिए भारत एक राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र ‘आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन’ (एबीडीएम) का निर्माण कर रहा है। यह रोगियों को स्वास्थ्य सुविधाओं और सेवा प्रदाताओं के बारे में सटीक जानकारियां प्राप्त करने में मदद करता है। भारत निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों में समान डिजिटल स्वास्थ्य तंत्र बनाने के लिए अपने ज्ञान और संसाधनों को साझा करने को तैयार है। इससे सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा का सपना साकार हो सकता है। लेकिन कॉपीराइट और स्वामित्व के अधिकार के कारण इन तक पहुँच को अवरूद्ध किया गया है।

डिजिटल स्वास्थ्य क्षेत्र में वैश्विक मानकों को ढीला रखने के स्वतंत्र प्रयास किए गए हैं। लेकिन संगठित सहयोग के बिना वे काम नहीं कर सकते हैं। यदि वैश्विक समुदाय या जी-20 समूह देश इन पर एकमत होकर, इनके प्रवर्तन के लिए तैयार हो सकें, तो भविष्य के लिए एक दृष्टि तैयार हो सकती है।

इसके लिए कुछ बिंदुओं पर काम करने की जरूरत है –

1) डिजिटल स्वास्थ्य पर किए जाने वाले प्रयासों को एक वैश्विक पहल के अधीन लाया जाए। इन्हें सुशासन ढांचे के द्वारा संस्थागत बनाया जाए।

2) एक प्रोटोकॉल पर सहयोग करना होगा। (दशकों पहले इंटरनेट पर ऐसा ही सहयोग किया गया था)।

3) आशाजनक डिजिटल समाधानों की पहचान करना और उनका विस्तार करना।

4) सभी हित धारकों को एक बोर्ड पर लाना होगा।

5) स्वास्थ्य डेटा के वैश्विक आदान-प्रदान के लिए विश्वास पैदा करना, और ऐसी पहलों को फंड करना।

जी-20 समूह की अध्यक्षता के साथ ही, भारत इनमें से कुछ मुद्दों पर आम सहमति बनाने का प्रयास कर सकता है। संकीर्ण हितों से ऊपर उठकर सार्वभौमिक कल्याण का दृष्टिकोण रखने पर ही यह सब साकार हो सकता है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित मनसुख मंडाविया के लेख पर आधारित। 9 जून, 2023

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