ई-कॉमर्स पर छोटे व्यापारियों को हानि पहुँचाने का आरोप कितना सही
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हाल ही में वाणिज्य और उद्योग मंत्री ने ई-कॉमर्स से छोटे व्यापारियों को होने वाले बड़े नुकसान के बारे में बात की थी। इसे बाजार नियमों और उपभोक्ता के हित से जोड़कर देखा-परखा जाना चाहिए –
– उपभोक्ताओं की भलाई कई बाजार नियमों के केंद्र में होती है। ये नियम अनुचित व्यापार और प्रतिस्पर्धा को नष्ट करने वाली प्रथा को नियंत्रण में रखते हैं। ये नियम सभी कंपनियों पर लागू होते हैं; चाहे वह अमेजॉन हो या फ्लिपकार्ट।
– बड़े व्यापार प्लेटफॉमों के विरूद्ध अविश्वास के मुद्दें दुनियाभर में बढ़ रहे हैं। उन पर उपभोक्ताओं और विक्रेताओं को नुकसान पहुँचाने का आरोप लगाया जा रहा है; विशेषरूप से अमेरिका में।
– भारत को यह आकलन करने की आवश्यकता है कि अमेजन या अन्य ई-कॉमर्स ने उपभोक्ताओं, छोटे आपूर्तिकर्ताओं और प्रतिस्पर्धा के क्षेत्र में क्या किया है।
– अमेजन या ई-कॉमर्स के साथ भारतीय उपभोक्ताओं को कम कीमतें, खरीदने में आसानी और बेहतर सेवा जैसी सुविधाएं प्राप्त हुई हैं।
– ई-कॉमर्स में उपभोक्ताओं को सामान खरीदने के लिए मजबूर नहीं किया जा रहा है। उल्टे, नापसंद और खराब सामान की घर बैठे वापसी की सुविधा भी दी जा रही है।
– मामूली आय या झुग्गी में रहने वाले उपभोक्ता को भी ई-कॉमर्स से वही सेवा मिल रही है, जो एक संभ्रांत क्षेत्र में रहने वाले अमीर को मिलती है।
– ई-कॉमर्स के कारण स्थानीय दुकानदारों ने भी अपनी कीमतों को कम रखा है।
– छोटी दुकानों का महत्व यहाँ खत्म नहीं हो जाता है। उपभोक्ता हमेशा विकल्पों की खोज में रहता है। वह ई-कॉमर्स और स्थानीय दुकानों की तुलना करता है। अगर पड़ोस की दुकान में बेहतर विकल्प मिलते हैं, तो वह उनमें जाना पसंद करता है।
– यदि बड़े शहरों में दुकानों के कम या न चलने की बात करें, तो इसके कारण अलग हो सकते हैं। एक तो भूमि की बढ़ती कीमतों से इन स्थानों पर दुकान लेना ही मुश्किल हो चला है। दूसरे, नई पीढ़ी 24×7 दुकान पर बैठना नहीं चाहती है।
– इन सबके अलावा, भारत की मेगा खपत में कई ऐसे प्लेटफॉर्म बन गए हैं, जो छोटे व्यापारियों को इकट्ठा करके एक वर्चुअल बाजार बना रहे हैं। छोटी गलियों में चलने वाले व्यापार इससे फल-फूल रहे हैं।
– भारत में करोड़ों उपभोक्ता ऐसे हैं, जो रोज कमाते और खाते हैं। ऐसे छोटे उपभोक्ताओं की जरूरतें छोटे आपूर्तिकर्ता ही पूरी करते हैं। अतः भारत के छोटे व्यापारिकयों को बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों से आतंकित नहीं होना चाहिए। उनके लिए भी विकल्प खुले हैं।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित रमा बीजापुरकर के लेख पर आधारित। 23 अगस्त, 2024