दुर्लभ खनिज की प्राप्ति के लिए विविध प्रयत्न
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दुर्लभ खनिज या रेयर अर्थ एलिमेंटस के लिए भारत चीन पर निर्भरता कम करने के लिए दो-तरफा कोशिशें कर रहा है। एक ओर वह चीन के साथ आर्थिक रिश्ते सामान्य करने की कोशिश कर रहा है, तो दूसरी तरफ घरेलू प्रोडक्शन बढ़ाने में लगा है।
कुछ बिंदु –
- घरेलू स्तर पर परमानेंट मैग्लेट बनाने का प्रयत्न किया जा रहा है। हालांकि इनकी शक्ति कम होने का अंदेशा है।
- ऐसे मैग्नेटिक मटीरियल की पहचान करने की कोशिश की जा रही है, जो दुर्लभ खनिज में से मिलता है। इसके साथ ही मोटर डिजाइन पर भी दोबारा विचार किया जा रहा है, ताकि एक्स्ट्रा कॉम्प्लेक्सिटी को शामिल किया जा सके।
- दूसरा तरीका मैग्नेट से भारी रेयर अर्थ एलिमेंट को हटाना है। इससे उसकी शक्ति की कमी में ज्यादा अंतर नहीं आएगा। साथ ही, मोटर को फिर से डिजाइन करने की जरूरत भी कम हो जाएगी।
- तीसरे, परमानेंट मैग्नेट को इलेक्ट्रोमैग्नेट से बदलकर, र्ईवी बनाने का अलग रास्ता निकाला जा सकता है। यह धारणीयता के लिहाज से अच्छा विकल्प है। इससे दुर्लभ खनिजों के खनन में कमी आएगी और पर्यावरण की कुछ रक्षा हो सकेगी।
कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स और ईवी में दुर्लभ खनिजों की जरूरत को देखते हुए भारत कई तरह के लाइसेंस भी जारी कर रहा है। इससे इनका खनन किया जा सकेगा। आयात के पूल में भी विविधता लाई जा रही है। कुल मिलाकर, सरकार की नीतियों से मिड-टर्म अयात और धारणीयता की रणनीति को राहत मिल सकती है।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 3 नवंबर, 2025