देश की आंतरिक सुरक्षा की सकारात्मक स्थिति

Afeias
01 Dec 2020
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Date:01-12-20

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भारत में आंतरिक सुरक्षा की स्थिति को लेकर काफी वर्षों से चौतरफा चिंता का वातावरण बना रहा। जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान प्रेरित आतंकवाद के अलावा देश के एक बड़े हिस्से में नक्सलवाद ने कड़ी चुनौती दी है। पूर्वोत्तर भारत की अपनी क्षेत्रीय समस्याएं हैं , जो समय-समय पर हिंसा को जन्म देती रहती हैं।

पिछले कुछ वर्षों में हमारी सेना की मुस्तैदी और पुलिस जवानों की सक्रियता के चलते जम्मू-कश्मीर में खूंखार आतंकवादियों का सफाया किया जा सका है। जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने से भी अब स्थिति पर नियंत्रण रखना आसान हो गया है। जहाँ तक देश के बाकी हिस्सों में आतंकवादी गतिविधियों का प्रश्न है , 2016 के बाद से कश्मीर के साथ ही किसी भी भाग में इससे जुड़ी कोई बड़ी दुर्घटना नहीं घटी है।

पिछले एक दशक में नक्सलवाद का भी क्रमशः पतन होते देखा जा रहा है। 2006 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए माओवादियों को सबसे बड़ी चुनौती बताया था। वर्तमान में कुछ राज्यों में इनकी सीमित गतिविधियों को छोड़कर अन्य स्थानों पर प्रभाव दिखाई नहीं पड़ता है। इसका कारण प्रशासन द्वारा इनको दिया गया सामाजिक-आर्थिक प्रोत्साहन और अतिरिक्त संसाधनों के साथ स्थानीय पुलिस की मुस्तैदी रहा है।

संपूर्ण भारत में वामपंथी अपील का प्रभाव कम होता दिखाई पड़ रहा है। इसकी विचारधारा के प्रति लोगों का आकर्षण कम होने का बहुत बड़ा कारण केंद्र सरकार की विकासोन्मुख नीतियां रही है।

इसके अलावा सरकार ने सुरक्षा और आर्थिक सुरक्षा को प्रमुखता देते हुए केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की 532 कंपनियों को इन क्षेत्रों में तैनात किया है। स्पेशल सेंट्रल असिस्टेंस जैसी विशेष विकास नीति को 35 जिलों में शुरू किया गया है।

पूर्वोत्तर भारत में भी आतंकवादी गतिविधयां न्यूनतम स्तर पर हैं। गत वर्ष असम , अरूणाचल प्रदेश और नगालैण्ड के त्रिसंगम पर कुछ हिंसक घटनाएं हुई थीं। सरकार ने इन क्षेत्रों के सक्रिय राजनैतिक समूहों के साथ कुछ शांति समझौतों के द्वारा स्थिति को काबू में रखा है। साथ ही वर्षों से विकास को तरसते इस पूरे क्षेत्र को सरकार दक्षिण-एशिया से संपर्क का द्वार बनाना चाहती है। ‘लुक ईस्ट’ विदेश नीति के चलते इस क्षेत्र में तेजी से विकास कार्य किए जा रहे हैं। भारत आसियान मुक्त व्यापार समझौता और इन देशों के साथ होने वाले अनेक द्विपक्षीय व्यापार समझौतों का दारोमदार पूर्वोत्तर क्षेत्रों पर है। अतः इस क्षेत्र की आंतरिक सुरक्षा और शांति को बनाए रखना बहुत जरूरी है।

देश की आंतरिक अशांति से निपटने के लिए सरकार समग्र दृष्टिकोण लेकर चल रही है। सुरक्षा , विकास, प्रशासन में सुधार और सार्वजनिक नीतियों के प्रबंधन के लिए ‘समाधान’ जैसे प्रयास किए जा रहे हैं। आशा है कि इन प्रयासों के सफल परिणाम प्राप्त होते रहेंगे।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित वरूण गांधी के लेख पर आधारित। 17 नवम्बर , 2020