देश की गिग इकॉनॉमी पर कुछ बिंदु
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- हाल ही के आंकड़ों के अनुसार देश में लगभग 80 लाख लोग गिग इकॉनॉमी में रोजगार प्राप्त कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि भारतीय युवाओं के लिए काम का यह तरीका रोजगार प्राप्त करने का मुख्य स्रोत बन गया है।
- गिग इकॉनामी को सरल शब्दों में एक मुक्त बाजार प्रणाली कहा जा सकता है, जिसमें संगठन या कंपनियां एक निश्चित अवधि के लिए अस्थायी तौर पर स्वतंत्र या फ्रीलांसर कर्मियों या श्रमिकों को नियुक्त करती हैं।
- स्मार्टफोन और दैनिक जरूरतों के लिए ऐप्स पर बढ़ती निर्भरता के चलते उपयोग और अवसरों का विस्तार हो गया है। इसने युवाओं और प्रवासी श्रमिकों को रोजगार के त्वरित साधन और काम के लचीले घंटे दे दिए हैं।
- इस व्यवस्था के अपने नुकसान भी हैं। इससे सस्ते श्रम की उपलब्धता बढ़ गई है, तो दूसरी ओर काम के घंटे बढ़ गए हैं। इसमें श्रमिकों को पार्टनर की तरह दिखाया जाता है। इससे उन्हें सामाजिक सुरक्षा या श्रमिकों को मिलने वाले अन्य लाभ नहीं मिल पाते हैं। कई उद्योगों में इन अस्थायी श्रमिकों की हालत बहुत खराब है।
इन स्थितियों के मद्देनजर राजस्थान सरकार ने राजस्थान प्लेटफॉर्म-बेस्ड गिग वर्कर्स (रजिस्ट्रेशन एण्ड वेलफेयर) बिल 2023 प्रस्तुत किया है। मसौदे में एक ‘वेलफेयर बोर्ड’ बनाने का प्रस्ताव है, जो गिग वर्कर्स के लिए कल्याण नीतियां बनाए, और उनकी समस्याओं का समाधान कर सके। यह एक सामाजिक कल्याण निकाय की तरह काम करेगा, और गिग श्रमिकों को काम पर लेने वाले उपभोक्ताओं के द्वारा किए गए भुगतान की राशि से चलेगा।
थाइलैण्ड-मलेशिया के परिवहन विभाग में इस प्रकार की व्यवस्था बखूबी काम कर रही है। इन कर्मियों को स्वास्थ्य और दुर्घटना बीमा भी दिया जाता है।
हाल ही में केंद्र सरकार ने लेबर कोड पारित किए हैं। इनमें एक सोशल सिक्योरिटी कोड भी है। यह गिग वर्कर्स के लिए अच्छी तरह से काम कर सकती है। योजना बहुत अच्छी है। इसका कार्यान्वयन भी अच्छा होना चाहिए। अगर हो सका, तो अन्य राज्य भी इस प्रकार के कदम उठाना चाहेंगे।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 27 अप्रैल, 2023