स्वच्छता सर्वेक्षण पर कुछ बिंदु

Afeias
13 Dec 2022
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  • यह शहरों और कस्बों की स्वच्छता के लिए किया गया दुनिया का सबसे बड़ा सर्वेक्षण है।
  • 2016 में इसमें जहाँ 73 शहर शामिल थे, वहीं अब 4,355 शहर शामिल हुए हैं।
  • पिछले वर्ष के 5 करोड़ की तुलना में इस वर्ष 9 करोड़ नागरिकों ने अपना फीडबैक दिया है। यह शहरों में स्वच्छता के प्रति बढ़ रही लोगों की संवेदशीलता को दिखाता है।
  • इंदौर लगातार छठी बार सूची में शीर्ष पर रहा हैं।
  • यह सर्वेक्षण भारत के सभी शहरों और कस्बों को 2026 तक कचरा मुक्त करने के स्वच्छ भारत मिशन के लक्ष्य को रेखांकित करता है।
  • ‘स्वच्छ भारत मिशन’ के शुरू होने के बाद कचरे का प्रसंस्करण चार गुना बढ़ गया है। लेकिन अभी भी शहरी क्षेत्र कूडे़ का ढेर बने हुए हैं। कचरे का पूरा निपटान न होने का बहुत बड़ा कारण सूखे व गीले कूड़े को अलग न करना, और जरूरत के हिसाब से प्रसंस्करण सुविधाओं का न होना है।
  • एकल उपयोग वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने की बजाय उसके प्रभावी ढंग से निपटान की भी आवश्यकता है।
  • अपशिष्ट जल का निपटान सही ढंग से करने की जरूरत है।
  • शहरों में स्थित छोटे-बड़े उद्योगों को अपने कचरे का प्रबंधन स्वयं ही करना चाहिए।
  • हाल ही में 250 स्टार्टअप ने स्वच्छता का भार अपने ऊपर लेते हुए यथासंभव प्रयत्न किए हैं। कचरे को रिसाइकिल करके खिलौने बनाने की शुरूआत की गई है।
  • स्वच्छता-उद्यमी जैसी एक नई श्रेणी सामने आ रही है। इसमें बहुत से पूर्व सफाईकर्मी हैं, जो अपने अनुभव से स्वच्छता के लिए बेहतर उपाय सुझाते हैं।
  • स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत बनाए गए 70 लाख शौचालयों के कम पड़ने की आशंका है, क्योंकि शहरों की ओर तेजी से पलायन हो रहा है।
  • सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई की बड़ी चुनौती है। इनकी सफाई करते हुए होने वाली मौतें अत्यंत दुखदायी हैं। लगभग 500 शहरों ने मैनहोल की सफाई अब मशीन से शुरू कर दी है, और अपने को ‘सफाईमित्र सुरक्षित शहर’ बना लिया है।
  • शहरों में जमा कूड़े के पहाड़ों में लगभग 16 करोड़ टन कूड़ा है। हाल ही में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने कई राज्यों पर इसके लिए पेनल्टी लगाई है, और इसके जल्दी समाधान के लिए कहा है। इंदौर शहर ने 15 लाख टन कूड़े के पहाड़ को जंगल में बदलकर उदाहरण प्रस्तुत किया है। अन्य शहर भी ऐसा कर सकते हैं।

रिड्यूस, रिसायकिल और रियूज, ये तीन ऐसे मंत्र हैं, जिन्हें कचरे के निपटान के लिए व्यक्तिगत के साथ-साथ सामुदायिक ध्येय बना लिया जाना चाहिए। यदि इन्हें हम एक बड़े फ्रेम में देखें, तो लाइफस्टाइल फॉर एन्वायरनमेंट या एलआईएफई तक पहुँच कर हम विश्व के लिए उदाहरण बन सकते हैं।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित अक्षय राउत के लेख पर आधारित। 14 नवबंर, 2022

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