डीपफेक का खतरा
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यदि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के लाभ अनेक हैं, तो हानियाँ भी हैं। हाल ही में हमने बॉलीबुड की अभिनेत्रियों के डीपफेक वीडियों की घटनाएं देखीं। ऐसी घटनाएं अब लोगों, व्यवसायों, सरकारों के लिए खतरा बन चुकी हैं। इस प्रक्रिया में उपयोगकर्ता चेहरे की तस्वीरें साझा करते हैं, और एक-दूसरे को एल्गोरिदम चलाने में मदद करते हैं। इसके बड़े सार्वजनिक नुकसान हैं-
व्यक्तिगत गरिमा और स्वायत्तता के मुद्दे चिंताजनक स्थिति में आ गए हैं।
बौद्धिक संपदा अधिकारों का स्वामित्व और प्रवर्तन खतरे में है।
इस प्रक्रिया के माध्यम से जन्मा धोखा और गलत प्रचार लोकतंत्र के लिए खतरा बन सकता है।
राष्ट्रीय सुरक्षा प्रभावित हो सकती है।
वित्तीय धोखाधड़ी के मामले बहुत ज्यादा बढ़ सकते हैं।
भारत में पनप रहे स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को यह ध्वस्त कर सकता है।
समस्या का हल कहाँ है –
- इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने सोशल मीडिया और इंटरनेट कंपनियों के लिए मौजूदा नियमों को रेखांकित किया है। इसमें आईटी मध्यस्थ निमय 3(2)(बी) भी शामिल है। यह शिकायत प्राप्त होने के 24 घंटे के भीतर ही मध्यस्थ को सामग्री हटाने का निर्देश देता है।
डीपफेक को विनियमित करना एक वैश्विक संघर्ष है। अमेरिका में विदेशियों के डीपफेक पर जवाबदेही को लेकर एक संघीय कानून है। कुछ अमेरिकी राज्यों ने गैर-सहमति वाले डीपफेक को आपराधिक करार दिया है। यूरोपियन यूनियन भी इस पर कानून बनाने को अग्रसर है।
समस्या यह है कि डीपफेक का पता लगाना कठिन होता है, क्योंकि विजुअल फोरेंसिक विशेषज्ञता वाली जालसाजी का पता लगाने के लिए जिन गड़बड़ियों और छायाओं का उपयोग करते हैं, वे काम नहीं करती हैं। दरअसल सिंथेटिक सामग्री की पहचान करने की तकनीक, डीपफेक करने वालों की गति से पीछे चल रही है। इसके दुरूस्त होने तक हमें सावधान रहने की जरूरत है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 8 नवंबर, 2023