डेटा सेंटर : लाभ एवं हानि

Afeias
13 Dec 2025
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भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था में डेटा सेंटर से जुड़े निवेश में खूब वृद्धि हो रही है। और इसी कारण भारत राष्ट्रीय व विश्व की बड़ी तकनीकि कंपनियों का अहम् केंद्र बनता जा रहा है। इसी में एक उल्लेखनीय घोषणा यह है कि आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस डेटा हब में गूगल द्वारा 15 अरब डॉलर का निवेश किया जाएगा।

भारत के डेटा सेंटर क्षेत्र में कुल आईटी लोड 1.7 गीगावाट है, जो आगे चलकर 2.5 से 3 गीगावाट तक हो जाएगा। भारत दुनिया के 20% डेटा का उत्पादन करता है, लेकिन वैश्विक डेटा सेंटर में इसका योगदान 3% ही है।

डेटा सेंटर्स के लिए सरकार का योगदान –

  • राज्य केंद्र को आकर्षित करने के लिए राजकोषीय प्रोत्साहन, भूमि अनुदान और नियामकीय फास्ट ट्रैक सुविधा की पेशकश कर रहे है। इससे रोजगार सृजन, प्रौद्योगिकी प्रसार, बुनियादी ढ़ाँचे का बेहतर निर्माण होगा।
  • डेटा सेंटर नीति, 2020 ने नियामक सुधारों और व्यावसायिक परिचालन को सुविधाजनक बनाने के लिए ढ़ाँचा स्थापित किया है।
  • केंद्रीय बजट 2022 ने डेटा और ऊर्जा भंडारण प्रणालियों को बुनियादी ढांचे का दर्जा दिया, जिससे परिचालकों को लंबी अवधि की कम लागत वाली फंडिंग तक पहुंच बनाने में मदद मिली।
  • राष्ट्रीय डेटा सेंटर नीति 2025 के मसौदे पर फिलहाल परामर्श जारी है। इसमें प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन का प्रस्ताव है। इससे क्षमता विस्तार, ऊर्जा दक्षता और रोजगार सृजन वाली फर्मों के लिए 20 साल तक की सशर्त छूट शमिल है।
  • पूंजीगत परिसंपत्तियों पर इनपुट टैक्स क्रेडिट का विस्तार करना और सिंगल विंडो क्लीयरेंस तंत्र शुरू करने की भी योजना है, ताकि मजबूत निवेशक अनुकूल तंत्र बन सके।

डेटा सेंटर्स का पर्यावरणीय प्रभाव –

भौगोलिक रूप से यह उद्योग पश्चिमी और दक्षिणी तटों पर केंद्रित है। गूगल की विशाखापट्टनम की योजना से क्षेत्रीय क्लाउड तथा एआई बुनियादी ढाँचे के केंद्र के रूप में भारत की स्थिति मजबूत होगी। लेकिन भारत के तटीय क्षेत्रों पर भी प्रभाव पड़ेगा। आइए, जानते हैं इन प्रभावों को –

  • डेटा संयंत्र के कूलिंग तंत्र हर साल लाखों लीटर पानी का उपयोग करते हैं। इनकी स्थापना भी मुंबई और चेन्नई, जहाँ पानी की कमी है, वहाँ हो रही है। कुछ परिचालक हवा से ठंडा करने की तकनीक तथा क्लोज्ड लूप सिस्टम अपना रहे हैं। लेकिन ज्यादातर केंद्र पानी की खपत वाली वाष्पीकरण कूलिंग पर निर्भर हैं।
  • पानी के अत्यधिक उपयोग से तटों पर ताजे पानी में खारापन और बाढ़ का खतरा बढ़ने के जोखिम भी हो सकते हैं। अधिक जल प्रयोग से हो सकता है खारा पानी भूजल में मिल जाए। इससे वह पानी हमेशा के लिए दूषित हो सकता हैं।

पानी का स्तर गिरने से भूमि भी धंस सकती है।

  • वैश्विक अनुमान के अनुसार वर्ष 2030 तक ये संयंत्र दुनिया की 8% बिजली का उपयोग कर सकते हैं, इससे ग्रिड पर ज्यादा दबाव पडे़गा। भारतीय बिजली ग्रिड अब भी ज्यादातर जीवाश्म ईंधन पर निर्भर है। इससे कार्बन उत्सर्जन का खतरा भी बढ़ता है।
  • दुनिया भर की समाचार रिपोर्टों से पता चलता है इन डेटा सेंटर्स की बढ़ती संख्या के कारण कमजोर समुदायों को बिजली की कमी और पानी की कटौती का सामना करना पड़ रहा है।

आगे की राह –

  • भारत में अक्षय बिजली स्रोतों, ऊर्जा कुशल बुनियादी ढांचा तथा अत्याधुनिक कूलिंग एवं पानी की रीसाइक्लिंग में वृद्धि की जाए।
  • सभी कंपनियाँ वार्षिक रिपोर्ट में अपने वाटर फुटप्रिंट का विवरण दें। साथ ही जल संरक्षण के लिए किए गए अपने प्रयासों को भी बताएँ।
  • अलग-अलग प्रक्रियाओं में पानी के विशिष्ट उपयोग के मानक विकसित किये जाएं।

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