भारतीय प्रजातंत्र का संकट

Afeias
23 Aug 2016
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international_day_of_democracyDate: 23-08-16

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  • भारतीय अर्थव्यवस्था का समय-समय पर बहुत ध्यान रखा गया। सन् 1991 से आर्थिक उदारीकरण के दौर में खाद्य आपूर्ति एवं विदेशी मुद्रा के बड़े संकटों को भी आसानी से सुलझा लिया गया। अतः आर्थिक पैमाने पर भारत एक तरह से खरा उतर रहा है। परंतु सन् 1947 के बाद से ही प्रजातंत्र का एक बड़ा आधार कमजोर रह गया है, और वह है- सामाजिक। जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग आज भी गरीबी में दबा हुआ है।
  • अर्थशास्त्री अमत्र्य सेन भी मानते हैं कि क्षमताएं ही व्यक्ति के जीवन को जीने योग्य बनाती है। यही सच्ची स्वतंत्रता है। अतः सरकार का ध्यान चहंुमुखी विकास पर होना चाहिए।
  • अलग-अलग सरकारों ने लगभग सात दशकों के काल में सार्वजानिक क्षेत्र के माध्यम से सामाजिक रूप से बहिष्कृत, दलित एवं आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को ऊपर उठाने के प्रयत्न किये। परंतु यह असफल रहा। निजी क्षेत्र पर प्रतिबंध लगाकर सरकारें पिछड़े वर्गों की क्षमताओं के विकास में असफल रहीं। अब किसी प्रत्यक्ष योजना के माध्यम से ही उन्हें सशक्त किया जा सकता है।
  • क्रय-शक्ति में विश्व की तीसरी बड़ी शक्ति होते हुए भी भारत आज विश्व की बड़ी अशिक्षित एवं कुपोषित जनसंख्या का घर बना हुआ है। अब समय है, जब हम मानवीय अभावों की ओर अधिक ध्यान दें। भारतीय महिलाओं एवं दलितों की स्थिति को सबसे पहले सुधारने की जरूरत है।
  • प्रजातंत्र की पूर्णता के लिए आवश्यक है कि हम सब अलग होते हुए भी समान रहें। इसके लिए कुछ ऐसी सार्वजानिक नीतियों का निर्माण करना होगा, जिसमें भागीदारी में समानता हो। स्कूल, अस्पताल, उद्यान एवं श्मशान जैसे सभी सार्वजनिक सुविधाओं में सबको समान अवसर एवं सुविधा दिया जाना सुनिश्चित करना होगा।
  • भारत में सभी वर्ग के लोगों के स्वतंत्र एवं शांतिपूर्ण ढंग से रहने योग्य सार्वजनिक नीतियों का अभाव है। दूसरे देशों पर नजर डालें, तो पता चलता है कि वहाँ ऐसे प्रावधान किए गए हैं। सिंगापुर में भी चीनी, भारतीय एवं मलय जातियों में सांमजस्य बढ़ाने के लिए जन आवास समिति गठित की गई है।
  • गुजरात एवं अन्य प्रांतों में दलितों की पिटाई, महिलाओं का बलात्कार एवं मुस्लिम या अन्य अल्पसंख्यकों के प्रति अत्याचार करके हम अपने देश को ही आतंकवाद का घर बना रहे हैं। अगर हम इन शाक्तियों पर नियंत्रण नहीं पा सके, तो प्रजातंत्र घिसटता हुआ ही दिखाई देगा।

 

दि हिंदूमें बालकृष्णन के लेख पर आधारित