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क्रिप्टो के लिए मध्य मार्ग का चयन
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यदि सरकार के नजरिए से देखें, तो बिना किसी विनियमन के चलने वाली क्रिप्टो मुद्रा; मनी लॉड्रिंग, ड्रग तस्करी तथा आतंकवाद की फंडिंग जैसी अवैध गतिविधियों का माध्यम बन सकती है। दूसरी ओर, क्रिप्टो को मान्यता देने और विनियमन के द्वारा इसे एसेट वर्ग में लाकर ट्रेडिंग गतिविधि की मॉनिटरिंग, निवेशकों के लाभ पर कर लगाने, और पारदर्शिता के सिद्धांत लागू करने में सफल हो सकती है।
आरबीआई की संभावित आशंकाएं-
- आरबीआई में शामिल केंद्रीय बैंकों को सबसे अधिक डर यह है कि क्रिप्टो, उनकी मौद्रिक संप्रभुता को नष्ट कर सकता है।
- दूसरी आशंका है कि क्रिप्टो, पूंजी के आउटफ्लो के लिए पाइपलाइन बन सकता है। लोग देश का धन इसमें लगाकर एक हार्ड करेंसी (ऐसी मुद्रा, जिसका अवमूल्यन जल्दी नहीं होता है) के रूप में विदेशों से निकाल सकते हैं।
चीन में ऐसे मामलों से हुई हानि के बाद वहाँ क्रिप्टो को प्रतिबंधित किया गया है।
- तीसरी चिंता, क्रिप्टो के मूल्य में अस्थिरता से उत्पन्न वित्तीय अस्थिरता हो सकती है। अस्थिरता से बैंक असुरक्षित हो जाते हैं।
- क्रिप्टो से आरबीआई और सरकार को सेन्योरेज राजस्व (सरकार द्वारा मुद्रा जारी कर कमाया जाने वाला लाभ) के नुकसान की आशंका बनी हुई है।
आगे का रास्ता क्या हो?
- अंतरराष्ट्रीय स्तर क्रिप्टो के लिए नियामक प्रतिक्रियाएं तीन श्रेणियों में हो सकती हैं। इसमें से पहले है, विनियमित संस्थानों को क्रिप्टो में लेन देन करने से रोकना। उच्चतम न्यायालय ने इसे खारिज कर दिया है।
- दूसरा तरीका, चीन की तरह पूर्ण प्रतिबंध लगाना है। इस माध्यम से व्यापार को अवैध चैनलों में धकेलने का जोखिम होता है। संभवतः इससे अधिक नुकसान हो।
- तीसरा तरीका ब्रिटैन, सिंगापुर और जापान जैसे देशों का अनुसरण करना है, जिन्होंने क्रिप्टो को लीगल टेंडर नहीं माना है। परंतु एक विनियमन रेडार के तहत चलने की अनुमति दे दी है।
भारत के लिए इस मध्यम मार्ग को अपनाना उत्तम हो सकता है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित दुवुरी सुब्बाराव के लेख पर आधारित। 24 नवम्बर, 2021