कोरोना वायरस का भविष्य-वैक्सीन के संदर्भ में

Afeias
10 Mar 2021
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Date:10-03-21

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कोविड-19 के संकट से निपटने के लिए पूरी दुनिया को वैक्सीन के रूप में समाधान चाहिए था। दुनियाभर के वैज्ञानिकों, वैक्सीन उद्योग, निवेशकों और सरकारों के अथक प्रयासों ने इसे एक वर्ष में ही संभव भी कर दिखाया है। वैक्सीन के उपलब्ध होने के साथ ही आम धारणा बन जाती है कि अब उक्त बीमारी से मुक्ति मिल सकती है, और सामान्य जीवन शुरू किया जा सकता है। कुछ लोग तो वैक्सीन से ‘हर्ड इम्यूनिटी’ को भी जोड़कर देख रहे हैं।

पीछे मुड़कर देखें, तो पता चलता है कि बहुत सी बिमारियों की वैक्सीन के परिणाम अलग-अलग प्रतिशत पर देखने को मिले हैं –

  • चेचक की वैक्सीन बहुत ही प्रभावशाली सिद्ध हुई थी, जिसने इसे जड़ से उखाड़ फेंका था।

इसी प्रकार ह्यूमन पैपिलोमा वायरस की वैक्सीन भी प्रभावशाली सिद्ध हुई है।

  • दूसरी ओर खसरा, रोटावायरस, काली खांसी जैसी बिमारियों की वैक्सीन वायरस के खतरे को कम कर सकती है, परंतु पूर्ण सुरक्षा नहीं दे पाती हैं।

कोविड वैक्सीन के तीनों चरणों के लैब परीक्षण में इस तथ्य की पुष्टि की गई है कि यह लक्षणों की तीव्रता को निश्चित रूप से कम करने में सक्षम है। इस प्रकार यह जीवन रक्षक तो है ही, इससे रोग की गंभीरता के कम होने से स्वास्थ सेवा पर पड़ने वाले भार को भी कम किया जा सकेगा।

यह एक सामान्य तथ्य है कि लक्षणों की तीव्रता को कम करने वाली वैक्सीन प्रायः रोग के संक्रमण को भी कम करती है।

दूसरे, वैक्सीन से ‘हर्ड इम्यूनिटी’ को जोड़कर देखे जाने का प्रश्न है। ‘हर्ड इम्यूनिटी’ एक ऐसी प्रक्रिया है, जो वैक्सीन की क्षमता और टीका लेने वाली जनसंख्या के प्रतिशत को मिलाकर चलती है।

इसे प्राप्त करने के लिए देश की 60-70% जनसंख्या में कोरोना प्रतिरोधक क्षमता का होना आवश्यक होगा। अगर वैक्सीन की रोग प्रतिरोधक क्षमता 60% ही है, तो हमें 100% जनसंख्या का टीकाकरण करना होगा।

निवारण कहने के बजाय उपलब्ध आवरण का प्रयोग ही उचित है। वैक्सीन से मिलने वाले सुरक्षा कवच को नकारा नहीं जा सकता। अतः हमें इसका लाभ लेते हुए सुरक्षित भविष्य की ओर कदम बढ़ाना चाहिए।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित ललित कांत के लेख पर आधारित। 22 फरवरी, 2021