कार्बन – व्यापार के नुकसान
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1. वर्तमान कार्बन-बाजार से कार्बन उत्सर्जन बढ़ रहा है, क्योंकि कंपनियों ने कार्बन क्रेडिट खरीद रखे हैं और अब वे निश्चिंत होकर ज्यादा मात्रा में कार्बन उत्सर्जन कर रही हैं।
2.क्रेडिट के लाभ को भी बढ़ा-चढ़ा कर बताया जा रहा है।
कार्बन-बाजार में पारदर्शिता की कमी है।
3.कार्बन बाजार परियोजनाओं की लागत की तुलना में कम भुगतान करता है।
4.कार्बन बाजार केवल परियोजनाओं के विकासकर्ताओं और अंकेक्षकों के पक्ष में ही कार्य कर रहा है। समुदायों के विकास के लिए कोई रकम नहीं बचती। उत्सर्जन कम करने के प्रयासों में भी उनकी भागीदारी का कोई वास्तविक आधार नही रह जाता ।
5.कार्बन राजस्व का लाभ गरीब लोगों तक नही पहुंच रहा है जबकि वे सुविधाओं के लिए भुगतान तक कर रहे हैं।
उदाहरण – कुकस्टोव परियोजना की लागत अर्जित कमाई का मात्र 20% है। फिर भी गरीब कुकस्टोव खरीदने के लिए भुगतान कर रहें हैं।
6.कार्बन उत्सर्जन में कमी की गणना का आधार भी स्पष्ट नही है।
उदाहरण के रूप में कुकस्टोव के वितरण की गणना हो रही है, परंतु कुकस्टोव इस्तेमाल हो भी रहे हैं या नहीं, इसकी जानकारी नही है।
7.सभी देश अपनी सुविधा के अनुसार उत्सर्जन में कमी के आसान विकल्पों का इस्तेमाल कर चुके हैं अब वे तुलनात्मक रूप से कठिन प्रयासों में निवेश वहन नहीं कर पाएंगे। इससे उत्सर्जन जारी रहेगा।
कार्बन-व्यापार में सुधार के लिए सुझाव –
1.कार्बन बाजार में पारदर्शिता हो।
2.बाजार के उद्देश्य निर्धारित किए जाएं और उसी अनुसार नीति.नियम तय किए जाएं।
3.कार्बन बाजार को समुदायों के साथ वार्षिक आधार पर आर्थिक संसाधन साझा करना चाहिए और स्वतंत्र रूप से इसकी पुष्टि भी होनी चाहिए।
4.परियोजनाओं का ढांचा सरल रहना चाहिए। तथा इनका नियंत्रण सार्वजनिक संस्थानों एवं लोगों के पास रहना चाहिए।
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