कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स में बदलाव की जरूरत
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हाल ही में अक्टूबर माह में महंगाई की दरें बहुत कम यानी 0.25 % तक गिरकर, 2012 के बाद सबसे कम कही जा रही है। पहली नजर में यह सच लगता है। लेकिन गहराई से देखने पर पता चलता है कि यह भारी गिरावट कीमतों में असली गिरावट के बजाय एक सांख्यिकीय गड़बड़ी है।
कुछ बिंदु –
- अक्टूबर के कंज्यूमर प्राइज इंडेक्स (सीपीआई) में खाने-पीने की चीजों की कैटेगरी में कीमतों में 3.7% की गिरावट देखी गई। यह सीपीआई की मौजूदा सीरीज के इतिहास में सबसे बड़ी गिरावट है। हालांकि, खाने-पीने की चीजों की कीमतें गिरी नहीं थीं, लेकिन पिछले साल अक्टूबर में महंगाई जबरदस्त 9.7% थी। इस आधार पर यह तय से यह पक्का किया गया कि अक्टूबर 2025 में इन चीजों में महंगाई नेगेटिव रहे। खाने-पीने की चीजों का सीपीआई बास्केट में कुल वेटेज 46% है। इसलिए इस गड़बड़ी ने पूरे इंडेक्स को नीचे खींच दिया।
- असल में बाकी के लगभग सभी सब-ग्रुप जैसे फ्यूल और लाइट, हाउसिंग आदि में महंगाई इस अक्टूबर में पिछले साल से ज्यादा थी। जीएसटी रेट में कटौती का असर अब तक सिर्फ कपड़ों और जूतों की कैटेगरी में देखा गया है। यह सब दिखाता है कि सीपीआई को अपडेट करना कितना जरूरी हो गया। है। –
- इसका बेस ईयर 2012 रखा गया है। वेटेज भी सही नहीं हैं।
- इसका एक प्रमाण आरबीआई का सर्वे भी है। सितंबर के सर्वे में मानी हुई महंगाई दर 7.4% रही है। यह सीपीआई की रिपोर्ट से बहुत अलग है।
- आरबीई की मॉनेटरी पॉलिसी कमिटी इंटरेस्ट रेट्स तय करते समय सीपीआई को अपने बेंचमार्क की तरह उपयोग में लाती है।
अतः जितनी जल्दी हो सके, सीपीआई का अपडेट होना चाहिए।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 14 नवंबर, 2025