क्लाउड सीडिंग तकनीक कितनी ठीक है
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हाल ही में दुबई में भरे पानी के मद्देनजर क्लाउड सीडिंग जैसे कार्यक्रम की चर्चा होने लगी है। हालांकि दुबई की घटना जलवायु परिवर्तन और अजीबोगरीब मौसम की स्थिति के कारण हुई थी, लेकिन इससे पहले अनेक देश विभिन्न उद्देश्यों के लिए इस तकनीक का उपयोग करते रहे हैं।
कुछ बिंदु –
– यह एक मौसम संशोधन तकनीक है, जो 1940 के दशक में शुरू हुई थी।
– इस तकनीक में कृत्रिम बारिश उत्पन्न करने के लिए सिल्वर आयोडाइड गोलियों का इस्तेमाल किया जाता है।
– आज, चीन के पास दुनिया का सबसे बड़ा क्लाउड सीडिंग कार्यक्रम है। 2022 में इसका इस्तेमाल वहाँ की एक सूखी नदी में जल भरने के लिए किया गया था।
– लगभग 52 देशों में यह कार्यक्रम उपलब्ध है।
– पिछले वर्ष दिल्ली सरकार ने प्रदूषण से निपटने के लिए इस कार्यक्रम पर विचार किया था। लेकिन विशेषज्ञों ने ऐसा न करने की सलाह दी थी।
कई जलवायु वैज्ञानिकों का मानना है कि क्लाउड सीडिंग से केवल मामूली मदद ही मिल सकती है। इसके अलावा मौसम के पैटर्न में हेरफेर करने के विपरीत प्रभाव भी हो सकते हैं। हितों का टकराव भी हो सकता है। भारत के हिमालयी राज्यों में अचानक आने वाली बाढ़ के लिए चीन की मौसम संशोधन गतिविधियों पर सवाल उठाए जाते रहे हैं। अतः इस प्रकार की कृत्रिम विधियों से बचकर, कार्बन उत्सर्जन कम करने पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 20 अप्रैल, 2024