चीन का बढ़ता जल-युद्ध
Date:08-04-21 To Download Click Here.
भारत के खिलाफ अप्रत्यक्ष युद्ध में चीन कई अपरंपरागत तरीके अपनाता रहा है। साइबर हमले और रणनीतिक युद्ध के बाद उसने सीमा पर बसे निर्जन गांवों को बसाना शुरू करने के बहाने निर्माण कार्य प्रारंभ कर रखा है। इसी श्रृंखला में जल-युद्ध भी उसका एक दांव है। हाल ही में चीन ने ब्रह्यपुत्र नदी पर एक विशाल परियोजना स्वीकृत की है, जो कई गुना अधिक बिजली पैदा करने की क्षमता रखती है। इससे चीन की आक्रामकता के खिलाफ खड़े भारत की जमीन हिल सकती है। इस परियोजना में ब्रह्यपुत्र के भारत के प्रवेश से ठीक पहले ही एक बांध बनाने का विचार है। ऐसा लगता है कि इस माध्यम से चीन भारत के खिलाफ जल को प्रभावी ढंग से हथियार बनाना चाहता है।
ब्रह्यपुत्र के चीनी भाग में पहले ही कई छोटे और मध्यम आकार के बांध बने हुए हैं। सीमा पर बनी नदी घाटी में किया जाने वाला कोई भी निर्माण कार्य, जल के प्रवाह को दुष्प्रभावित करने का अंदेशा पैदा करता है।
कुछ गंभीर निहितार्थ –
- विश्व में अधिकतम ऊँचाई पर बहने वाली ब्रह्यपुत्र नदी, अपनी लंबी यात्रा में बहुत सारी गाद एकत्रित करती है, जो जल-विज्ञान और जैव-विविधता की दृष्टि से अद्वितीय कही जा सकती है। चीन की विशाल परियोजना से पोषक गाद का प्रवाह दुष्प्रभावित होगा।
- ऐसा होने पर ब्रह्यपुत्र का वार्षिक बाढ़-चक्र बाधित होगा।
- खेतों को उर्वरक बनाने वाली गाद की कमी से फसलें प्रभावित होंगी।
- मत्स्य-पालन पर बुरा असर पड़ेगा।
- ब्रह्यपुत्र-गंगा-मेघना डेल्टा में कमी आएगी। उसकी लवणता में वृद्धि होगी।
- मेकांग घाटी में बने चीन के बांधों से पहले ही पर्यावरण को बहुत हानि पहुँच रही है। ब्रह्यपुत्र घाटी में बांध के निर्माण से और भी अधिक नुकसान होने की आशंका है। इसका ज्यादा प्रभाव बांग्लादेश पर पड़ सकता है। विभिन्न कारणों से बांग्लादेशी शरणार्थी पहले ही भारत में रह रहे हैं। इस बांध से इनकी संख्या बढ़ सकती है।
- चीन के इस बांध का निर्माण भूकंपीय खतरे वाले क्षेत्र में किया जा रहा है। यह क्षेत्र सिस्मीक जोन में सक्रिय क्षेत्र माना जाता है।
चीन के भारतीय सीमा पर निर्माण कार्यों से पहले भी अरूणाचल और हिमालय में भयंकर बाढ़ आ चुकी है। सन् 2017 में भी चीन ने भारत की ओर जाने वाले पानी के बहाव के डेटा को रोधित किया था, जिससे बाढ़ की पूर्व चेतावनी मिलनी बंद हो गई थी, और परिणामस्वरूप असम में कई मौतें हुई थीं। सन् 2018 के वुहान सम्मेलन के बाद ही चीन ने इस डेटा को बहाल किया था।
भारत के पास बहुत कम विकल्प हैं। फिर भी चीन की आंतरिक कमजोरियों और फिजूलखर्ची का लाभ उठाते हुए उसके विषम युद्ध के प्रभावों को नियंत्रित किया जा सकता है। इस हेतु हमें एक बेहतर दृष्टि और संकल्प की आवश्यकता होगी।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित ब्रह्य चेलाने के लेख पर आधारित। 17 मार्च, 2021