भ्रष्टाचार के विरूद्ध एक और कदम
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देश में भ्रष्टाचार की लड़ाई बहुत समय से चली आ रही है। हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने इस लगातार चलने वाली लड़ाई में तेजी लाने के लिए भ्रष्टाचार के मामलों में आवश्यक साक्ष्य की जरूरत में कमी कर दी है। ऐसा नहीं है कि सर्वोच्च न्यायालय ने पहली बार ऐसा कोई निर्णय दिया है। लेकिन न्यायालय के लगातार प्रयासों के बावजूद सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार कम नहीं हो सका है। संविधान पीठ के इस निर्णय से शायद कुछ कमी आ सके। कुछ बिंदु –
- इस निर्णय में न्यायलय ने इस मिथक को खारिज कर दिया कि अपराध का पूर्ण प्रमाण ही अपराधी को दोषी ठहराने में मदद कर सकता है।
- न्यायालय ने अब यह निर्धारित किया है कि भले ही अभियोजन पक्ष के गवाह अपनी बात से पलट जाएं, तो भी अभियोजन पक्ष एवं अपराधी के विरूद्ध न्यायालय में प्रस्तुत सभी साक्ष्यों के आधार पर अपराधी का दोष सिद्ध माना जा सकेगा।
- देश की शीर्ष प्रशासनिक सेवाओं व अन्य सार्वजनिक सेवाओं में सत्यनिष्ठा एवं ईमानदारी जैसे नैतिक मूल्यों की प्रतिष्ठा के लिए यह प्रशंसनीय है।
भ्रष्टाचार से लड़ाई के दो पहलू हैं : कानून की गंभीरता और उसका अनुप्रयोग। अक्सर ही हमारे कानूनों को और सख्त बनाने के पक्ष में आवाज उठाई जाती है, ताकि गलत काम करने वालों को सजा मिल सके। लेकिन ऐसे कठोर कानून से समस्या का निवारण एक सीमा तक ही संभव हो पाता है। जन शक्ति की ताकत ऐसा हथियार है, जो सार्वजनिक जीवन को साफ-सुथरा बनाने में मदद कर सकता है। दोनों ही पहलू समान रूप से महत्वपूर्ण हैं।
न्यायालय के इस निर्णय से भ्रष्टाचार का चेहरा बदलेगा या नहीं, यह कहा नहीं जा सकता है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि हमें लड़ाई छोड़ देनी चाहिए।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित आरण्केण्राघवन के लेख पर आधारित। 10 जनवरी, 2023