भारतीय जनता की साझेदारी की विरासत को पुनस्थापित किया जाए
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वर्तमान भारत में जिस प्रकार से हिंदू-मुस्लिम विभाजन एक नए और खतरनाक अनुपात में बढ़ रहा है, वह अलग-अलग समुदाय की साझेदारी की विरासत को नष्ट करने वाला है। यहाँ हिंदू-मुस्लिम दंगों का होना कोई नई बात नहीं है। मामूली घटनाओं पर दंगे शुरू होते रहे हैं। लेकिन अब इनका रूप बदल गया है। भाड़े के सैनिकों की मदद से भयावह उद्देश्यों की पूर्ति के लिए इनका विस्तार खतरनाक है।
रामनवमी के दिन गड़बड़ी किसने शुरू की, यह हम शायद ही कभी जान पाएंगे। इस प्रकरण में प्राप्त करने वाले वे नामचीन, चेहराविहीन, सौम्य दिखकर जोड़तोड़ करने वाले लोग हैं, और सहने वाले, निर्दोष हिन्दू-मुस्लिम हैं। इन सबके बीच देश की एकता, संगति और अंतरात्मा के विनाश का तो कोई हिसाब ही नहीं है।
सन् 1924 में हुए हिंदू-मुस्लिम दंगों के दौरान गांधीजी ने 21 दिनों का उपवास रखा था। बहुत कमजोर होकर उन्होंने कहा था – ‘हमें एक साथ रहने में सक्षम होना चाहिए।’ आज गांधी का हवाला देने का कोई अर्थ नहीं लगता। उन्हें प्राचीन इतिहास माना जाने लगा है।
लेकिन तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन जैसे नेता आज भी हैं, जो धर्म निरपेक्षता पर ढृढ़ हैं। इसी संदर्भ में कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री का रामनवमी पर दिया गया वक्तव्य उल्लेखनीय है, जिसमें उन्होंने हिंदू-मुसलमानों से एक ही माँ की संतानों की तरह जीने की इच्छा जताई थी।
न्यायालयों की भूमिका –
अब समय आ गया है, जब देश के न्यायालयों, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तथा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को हमारे संविधान की प्रस्तावना और अनुच्छेद 25 को बनाए रखने के लिए कदम उठाना चाहिए। हाल ही में दिल्ली के जहांगीरपुरी क्षेत्र में हुए दंगों के बाद बुल्डोजर चलाने की घटना पर उच्चतम न्यायालय ने रोक लगाई है।
अंतकरण की स्वतंत्रता को कमजोर करना एक मौलिक स्वतंत्रता को कमजोर करना है। भड़काऊ शब्दों से नफरत फैलाना और सत्ता में बैठे तत्वों द्वारा किसी को उकसाने जैसी घटनांए संविधान को कमजोर करती हैं। ऐसा करना भारत के लोगों के साथ विश्वासघात होगा। इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित गोपालकृष्ण गांधी के लेख पर आधारित। 15 अप्रैल, 2022