भारत-नेपाल संबंधों में एक नया बदलाव

Afeias
04 Feb 2021
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Date:04-02-21

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भारत-नेपाल के संबंधों की एक लंबी परंपरा रही है। नेपाल की आंतरिक राजनीति के मूलभूत सिद्धांत ही उसकी विदेश नीति को दिशा देते हैं। 2020 में नेपाल और दक्षिण एशिया में भारत की पारंपरिक बढ़त का मुकाबला करने के उद्देश्य से चीन ने आक्रमकता दिखाई थी। इसी के अंतर्गत चीन की भू-रणनीतिक, आर्थिक और बुनियादी ढांचों के निर्माण से संबंधित पहल में नेपाल के नाजुक लोकतंत्र को प्रलोभन दिया गया था। लेकिन भारत के गलत नक्शे को जारी करने से कुछ गलतफहमिया पैदा हो गई।

अपनी घरेलू राजनीतिक कलह के बीच में ही नेपाल के विदेश मंत्री ने पिछले दिनों भारत-नेपाल के संयुक्त आयोग की बैठक में भाग लिया, जिसमें दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास को बढ़ावा देने की दिशा में अनेक कदम उठाए गए।

  • कोविड-19 महामारी से संबंधित आपसी सहयोग के लिए अनेक द्विपक्षीय पहल की गई। भारत ने नेपाल को प्राथमिकता पर वैक्सीन उपलब्ध कराई भी ।
  • विकास के क्षेत्र में मोतीहारी-अमलेखगंज पेट्रोलियम उत्पाद पाइपलाइन का चितवन तक विस्तार करने, और सिलगुड़ी से झापा के लिए नई पाइपलाइन के निर्माण पर चर्चा की गई।
  • भारत और नेपाल के बीच पहली अपग्रेडेड पैसेंजर रेलवे लाइन पर चर्चा हुई।
  • दोनों देशों के बीच लोगों और वस्तुओं के सीमापार आवागमन को सुगम बनाने की दिशा में सहयोग हेतु तीसरे चैक पोस्ट के निर्माण का कार्य प्रारंभ किया जा चुका है। एक नए एकीकृत चैकपोस्ट का निर्माण कार्य जल्द ही प्रारंभ होने वाला है। चूंकि नेपाल अपने व्यापार-व्यवसाय के लिए भारत के बंदरगाहों पर भरोसा करता रहा है, अतः ये चैकपोस्ट बहुत महत्व रखते हैं।
  • दोनों देशों के बीच संयुक्त हाइड्रोपावर परियोजना के अमल में आने की उम्मीद है।
  • भारत ने नेपाल की दो प्रमुख सांस्कृतिक विरासत के जीर्णोद्धार का जिम्मा लिया है।
  • दूसरी ओर, नेपाल ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता की मांग को समर्थन दिया है।

गौर करने की बात है कि दोनों देशों के बीच इस प्रकार की सार्थक और सकारात्मक बैठक तब संभव हुई है, जब चीन, नेपाल के नीति-निर्माण का झुकाव अपनी ओर करने का प्रयास कर रहा है। नेपाल में चल रही उथल-पुथल के बीच भारत का लगातार प्रयास है कि वह नेपाल के सभी क्षेत्रों में परिवर्तन को अंजाम दे सके।

इस समय नेपाल का एक समूह राजतंत्र के समर्थन में आंदोलनरत है, और वर्तमान प्रधानमंत्री ओली के चुनाव क्षेत्र में भी ऐसा एक समूह सक्रिय है। ऐसे समय में नेपाल की भारत समर्थित नीति का आना इस तथ्य की ओर इंगित करता है कि वे भारत से भी अपने प्रति समर्थन तलाश रहे हैं।

दुनिया के कई अन्य लोकतंत्रों की तरह, नेपाल के लोकतंत्र पर भी बहुसंख्यकवाद का साया है। नेपाल की स्थिति ऐसी है कि वह राजनीतिक अस्थिरता के एक और दौर में प्रवेश करने का जोखिम नहीं उठा सकता है, और जिनके पास भारत-नेपाल द्विपक्षीय संबंधों का नेतृत्व करने का अधिकार है, उन्हें इस पर विचार करना चाहिए।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित अतुल के ठाकुर के लेख पर आधारित। 20 जनवरी, 2021