
भारत के समक्ष दुर्लभ खनिजों की चुनौती
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चीन ने भारत को निर्यात किए जाने वाले मैग्नेट पर प्रतिबंध लगा दिया है। यह इलेक्ट्रिक वाहन तथा अन्य वाहनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, हालांकि इसका प्रयोग अल्प मात्रा में ही होता है। समाचार पत्रों की खबरों के अनुसार कंपनियों के पास इनका भंडार खत्म होने को है। एक प्रतिनिधिमंडल चीन जाकर इसकी प्रक्रियात्मक बाधाओं को खत्म करने की कोशिश करेगा।
हमारे समक्ष दुर्लभ खनिजों की चुनौती क्यों?
- भारत मैग्नेट सहित सभी दुर्लभ तत्वों (17 खनिजों का समूह, जो आवर्त सारणी में लैथेनाइड के रूप में वर्गीकृत) के लिए आयात पर निर्भर है। ये हरित ऊर्जा इलेक्ट्रानिक्स तथा अन्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
- भारत में जिन खनिजों का आयात किया जाता है, उनमें से कुछ के बड़े भंडार हमारे पास हैं। पर हम खनिजों की खोज एवं खनन में लालफीताशाही के शिकार रहे हैं।
- जो खनिज निकाले भी जाते हैं, उनके प्रसंस्करण की कोई व्यवस्था नहीं है। जबकि चीन में लीथियम व कोबाल्ट के प्राकृतिक भंडार न होने पर भी सिर्फ प्रसंस्करण के कारण इन पर एकतरफा अधिकार रखता है।
- हमने खनिज व खनन की जिम्मेदारी चुनिंदा सरकारी कंपनियों को दे रखी है। हालांकि अब नीलामी के द्वारा निजी क्षेत्र भी इसमें भागरीदारी निभा सकता है।
- निजी कंपनियां खोज एवं अन्वेषण में जोखिम लेने के लिए अधिक लाभ की मांग कर रही हैं, और भारत का नीलामी ढाँचा उन्हें कम आकर्षित कर रहा है।
इस चुनौती से पार पाने के उपाय –
- यद्यपि भारत सरकार ने दुर्लभ धातुओं की खोज व खनन के लिए कुछ घोषणाएं की हैं, लेकिन लीथियम, दुर्लभ खनिजों, सेफाइट व कोबाल्ट सहित कई खनिजों के प्रसंस्करण के लिए नए सिरे से सोचने की आवश्यकता है। इसके लिए मिशन मोड में काम होना चाहिए।
- भारत सहित लगभग पूरा विश्व ही चीन द्वारा आपूर्ति तंत्र में डाले जाने वाले व्यवधान को लेकर चिंतित है। हमें अपनी निर्भरता चीन पर खत्म करनी होगी। हालांकि इसमें समय लगेगा।
- कोबाल्ट का सबसे बड़ा ज्ञात भंडार रिपब्लिक ऑफ कांगो में है। चीन ने वहाँ खदानों पर नियंत्रण कर एक मजबूत आपूर्ति व्यवस्था विकसित कर ली है। तथा प्रसंस्करण क्षमता भी विकसित कर ली है। हमें भी ऐसा करना चाहिए, क्योंकि कोबाल्ट का 5वां सबसे बड़ा अनुमानित भंडार भारत में है। लीथियम तथा अन्य तत्व भी खनन से प्राप्त हुए हैं।
- हमें थोरियम को भी खनन प्राथमिकताओं मे शामिल करना चाहिए। भारत में इसका बड़ा भंडार भी है। थोरियम आधारित बिजली संयंत्र चीन में स्थापित हो चुका है। अमेरिका भी थोरिमय आधारित परमाणु ऊर्जा पर शोध कर रहा है। अर्थात् भविष्य में यह बहुत उपयोगी धातु सिद्ध होगी।
- हमें प्राकृतिक हाइड्रोजन में भी आत्मनिर्भरता प्राप्त करनी होगी, वरना इसके लिए भी दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ेगा।