
भारतीय शहरों को क्या चाहिए ?
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- आवासीय कॉलोनियों में जरूरी सुविधाओं की पर्याप्तता के बिना ही आबादी बढ़ाई जाती है।
- अक्सर ही अवैध रिहाइशी क्षेत्रों के लिए बिजली के तार खींचे जाते हैं।
- अतिरिक्त आपूर्ति या जल निकासी के बिना नए निर्माण के लिए जलस्त्रोत का दोहन किया जाता है।
शहर, गांवों का विस्तार नहीं होते हैं। वे सीमित क्षेत्र में कांक्रीट के ऐसे ढांचे से बने होते हैं, जहाँ अक्सर आबादी का घनत्व काफी अधिक होता है। ऐसे ढांचों के निर्माण के लिए दूरदृष्टि, नवाचार और कुशल प्रशासन की आवश्यकता होती है। यदि पूरे विश्व के शहरों पर नजर डालें, तो आसानी से देखा जा सकता है कि ये गांवों या राज्यों से अलग बने होते हैं।
उदाहरण के लिए न्यूयार्क के ब्रुकलिन ब्रिज को लें, तो देखा जा सकता है कि शताब्दी पूर्व बना यह पुल सड़क मार्ग, सायकिल ट्रैक, पैदलयात्री और रेलमार्ग सभी के लिए पर्याप्त स्थान रखता है। इसी प्रकार से नगर योजना के लिए भी तीन स्तरीय समाधान हो सकता है –
1) प्रशासन – सर्वप्रथम नौकरशाही की जिम्मेदारी होती है कि वह नागरिक प्रशासन के वृहद् पहलू को देखते हुए निर्णय ले। शहर के लिए भूमि आवंटन, आवश्यक सुविधाएं, बजट, केंद्रीय सुविधाओं और सेवाओं की व्यवस्था, शहरी परिवहन, आबादी के घनत्व पर नियंत्रण तथा कचरा प्रबंधन आदि की जिम्मेदारी ले।
2) इंजीनियरिंग – शहरों के बुनियादी ढांचों के लिए समयानुकूल सोच रखना निर्माण के दिशानिर्देश और उपनियमों का पालन, ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों का प्रयोग करना, परिवहन के नए प्रयोग और नगरीय आवासों के नए पर्यावरण अनुकूल डिजाइन तैयार करना इस क्षेत्र की जिम्मेदारी है।
3) रखरखाव – शहरी प्रशासन को चुस्त-दुरूस्त रखने के लिए निरंतर काम करने से ही शहरों का हाल ठीक रह सकता है।
विश्व के अधिकांश नगर एक ही प्रधान ‘मेयर’ के अधीन चलते हैं। मानव विकास के इच्छुक देश आज भी नगर प्रशासन को अच्छी तरह चला रहे हैं। तो फिर भारत ऐसा क्यों नहीं कर सकता ?
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित गौतम भाटिया के लेख पर आधारित। 18 नवंबर, 2022