भारत में ई-वेस्ट से जुड़े कुछ बिंदु
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- भारत की समृद्धि के साथ ही यहाँ ई-वेस्ट की मात्रा बढ़ती जा रही है।
- विश्व में भारत तीसरा सबसे बड़ा ई-वेस्ट जेनरेटर देश है।
- अन्य देशों की तरह ही यह केवल 15-17% ई-वेस्ट को रिसाइकिल करता है।
- सामान्य कचरा-प्रबंधन की तुलना में ई-वेस्ट प्रबंधन कहीं बड़ी चुनौती बन चुका है। इसकी मात्रा को कम करने के लिए बेहतर डिजाइन और अधिक चलने वाले इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की जरूरत है।
- डिजाइन ऐसी हों, जिनकी आवश्यकतानुसार मरम्मत की जा सके।
- चार्जर्स का मानकीकरण किए जाने की जरूरत है।
- ई-वेस्ट को इकट्ठा के लिए बेहतर तंत्र होना चाहिए। उत्पादकों को ही इनके कलेक्शन और प्रबंधन की जिम्मेदारी दी जा सकती है।
- स्थानीय प्रशासन की क्षमता को बढ़ाकर उसे ई-वेस्ट संग्रहण के लिए जिम्मेदारी दी जा सकती है। स्थानीय प्रशासन के माध्यम से ई-वेस्ट के सही निपटान के लिए जागरूकता अभियान चलाया जा सकता है।
- उपभोक्ताओं को इलेक्ट्रॉनिक्स के सही निपटान के लिए कुछ प्रोत्साहन दिए जा सकते हैं। इससे वे इसे ऐसी जगह भेजेंगे, जहाँ इसका फिर से उपयोग किया जा सके।
- इन सबके लिए एक सही फ्रेमवर्क हो। नियम और दिशा निर्देश दिए जाएं।
- ई-वेस्ट तो वास्तव में अनेक धातुओं और खनिजों का खजाना होते हैं। विशेषज्ञों का अनुमान है कि 2017 में, उचित निष्कर्षण (एक्सट्रैक्शन) से 07-1 अरब डॉलर का सोना प्राप्त किया जा सकता था।
- लगभग 90% ई-वेस्ट को अनौपचारिक क्षेत्र में रिसाइकिल किया जाता है। इससे लाभ कम और खतरे ज्यादा होते हैं।
- इसके सही निपटान के लिए इसे औपचारिक क्षेत्र बनाया जाना चाहिए। श्रमिकों और कर्मचारियों को प्रशिक्षण, कौशल के साथ-साथ सही संसाधनों से लैस किया जाना चाहिए। सुरक्षित और स्वस्थ कार्य वातावरण का निर्माण किया जाना चाहिए।
इसके साथ ही इनसे होने वाले लाभ की उम्मीद की जा सकती है।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 31 जनवरी, 2023
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