भारत के वायु प्रदूषण से जुड़े कुछ बिंदु
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– उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों का वायु प्रदूषण दोहरे संकट को जन्म दे रहा है। एक पर्यावरणीय आपातकाल और दूसरा सार्वजनिक स्वास्थ्य आप
– प्रदूषण के कारण भारत में हर साल दस लाख से ज्यादा लोगों की जान जाती है। सकल घरेलू उत्पाद में प्रतिवर्ष 1.6% – 1.8% की हानि होती है।
– प्रभावी समाधान के लिए प्रदूषण स्रोतों की पहचान की गई है – वाहनों से होने वाला उत्सर्जन, औद्योगिक प्रदूषण, पराली जलाना, और निर्माणाधीन स्थलों से निकलने वाली धूल मुख्य कारक हैं।
समाधान –
- शहरी परिवहन को ग्रीन बनाना – भारत का परिवहन क्षेत्र 2.9 अरब टन कार्बन डाइ ऑक्साइड उत्सर्जन करता है। नार्वे ( जहाँ 54 % नई कारें इलेक्ट्रिक हैं ) और कोपेनहेगन ( जहाँ 62% प्रतिदिन साइकिल चलाते हैं ) से सबक लिया जाना चाहिए।
- स्वच्छ उद्योग और ऊर्जा – देश के कुल कार्बन उत्सर्जन का 30-35% औद्योगिक क्षेत्र से होता है, जिसमें कोयला बिजली संयंत्र की 60% जिम्मेदारी है। चीन ने नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देकर और सख्त प्रदूषण नियंत्रण लागू करके शहरी उत्सर्जन को 40% तक कम कर दिया है।
- कृषि और पराली जलाना – इससे प्रतिवर्ष 14.9 करोड़ टन कार्बन उत्सर्जन होता है। अर्जेंटीना, ब्राजील और बोलीविया ने अवशेष प्रबंधन की बेहतर तकनीकों से ठूंठ जलाने की प्रथा को लगभग समाप्त कर दिया है।
- सामूहिक शक्ति – भारत का एसएएफएआर प्लेटफार्म वास्तविक समय में वायु गुणवत्ता अपडेट प्रदान करता है। इससे नागरिकों को जानकार बनाकर सशक्त बनाया जा रहा है। दक्षिण कोरिया ने प्रदूषण की निगरानी के लिए ‘नागरिक निरीक्षक’ बनाए हैं। वैश्विक स्तर पर भी एक मंच बनाया जाना चाहिए, जहाँ नागरिक स्वच्छ वायु की लड़ाई में अग्रणी भूमिका निभा सकें।
- सतत् वित्तपोषण – 2015 और 2021 के बीच वायु प्रदूषण को दूर करने के लिए अंतरराष्ट्रीय जलवायु वित्त का 1% से भी कम दिया गया है। भारत सरकार ने 2023-24 के बजट में इस हेतू 64% अधिक राशि आवंटित की है।
- खाना पकाने के लिए स्वच्छ ऊर्जा – 76% भारतीय घरों में एलपीजी की सुविधा है। उज्जवला योजना से 8 करोड़ घरों को स्वच्छ ईंधन से जोड़ा गया है। इमें मेक्सिको के सोलर कुकिंग और केन्या के स्वच्छ चूल्हों जैसे कार्यक्रम से और भी सीखना चाहिए।
- वन हमारे रक्षक – 2001 से 2022 के बीच भारत ने 21 लाख हेक्टेयर वन खो दिए है। भारत के ग्रीन इंडिया मिशन और प्रतिपूरक वनीकरण जैसे प्रयास बढ़ाए जाने चाहिए।
स्वच्छ वायु को सिर्फ एक पर्यावरणीय या स्वास्थ्य समस्या के रूप में नहीं, बल्कि एक आर्थिक संपत्ति के रूप में देखा जाना चाहिए।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित सौम्या स्वामीनाथन के लेख पर आधारित। 24 नवंबर, 2024
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