भारत के स्वास्थ्य ढांचे की कमियां और मजबूती के उपाय
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भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति अच्छी नहीं है। लगभग सभी स्वास्थ्य संकेतकों पर हम जी-20 देशों में अंतिम स्थान पर हैं। इसमें सुधार के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं।
स्वास्थ्य व्यवस्था की कमजोरी की आंशिक जिम्मेदारी 1919 और 1935 के अधिनियमों को दी जा सकती है। इनमें स्वास्थ्य को राज्य के विषय के रूप में रखा गया था। क्षेत्रों का को असमान विकास राज्यों के बीच की स्वास्थ्य सेवा में बड़ा अंतर ला देता है। यूपी और बिहार बुरी स्थिति में हैं, जबकि तमिलनाडु और केरल की स्वास्थ्य सेवाओं की तुलना उच्च-मध्यम आय वाल देशों से की जा सकती है। स्वास्थ्य पर किए जाने वाले व्यय के आधार पर ऐसा अंतर दिखाई देता है। कुछ बिंदु –
- स्वतंत्रता के बाद से केंद्रीय स्वास्थ्य बजट नगण्य रहा है। कई पंचवर्षीय योजनाओं में यह लगभग 2% पर स्थिर रहा है। संविधान ने केंद्र के लिए स्वास्थ्य क्षेत्र में समान भूमिका का प्रावधान नहीं किया है। इसलिए राज्यों के बीच स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे की खाई चौड़ी हो गई है।
- नियमों में असमानता है। भारत सरकार ने गुणवत्ता में सुधार और मरीजों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक पंजीकरण और विनियमन ढांचे के रूप में 2010 में नैदानिक प्रतिष्ठान अधिनियम बनाया था। लेकिन यह अप्रभावी रहा है, क्योंकि राज्य और केंद्र शासित प्रदेश इसे नहीं अपनाने का विकल्प चुन सकते हैं।
- राज्य स्तरीय दवा और उपकरण विनियम ने एक समान दवा विनियमन को रोक रखा है। केंद्र दवाओं के निर्माण के लिए नियम बनाता है। लेकिन लाइसेंस राज्य देते हैं। ड्रग्स एण्ड कॉस्मेटिक्स एक्ट के नियमन में असमानता है। राज्यों में असमान नियामक निरीक्षण, परिवर्तनीय दवा गुणवत्ता, असंगत मानक प्रवर्तन और असुरक्षित दवाओं से पर्याप्त सुरक्षा नहीं है।
केंद्रीकृत विनियमन, सेवाओं का विकेंद्रीकरण –
सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को आदेश दिया था कि आपातकालीन और जरूरी देखभाल के लिए नागरिकों को बिना भुगतान के भी सुविधा दिए जाने का प्रबंध किया जाए। लेकिन इसका कार्यान्वयन मुश्किल है। उदाहरण के लिए, राजस्थान सरकार ने इसे लागू करने का प्रयत्न किया है। लेकिन वह अपने दम पर इस उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर सकता है। राज्य अपनी सीमाओं के बाहर के अस्पतालों में अपने नागरिकों को सुविधा कैसे प्रदान कर सकता है?
ऐसा बुनियादी अधिकार सभी को मिलना चाहिए। लेकिन इससे संबंधित कानूनों का अलग-अलग राज्यों में भिन्न स्वरूप होने से बात नहीं बन सकती है। इसलिए आपातकालीन देखभाल और अस्पतालों की भूमिका की एक समान परिभाषा तैयार की जानी चाहिए।
15वें वित्त आयोग ने भी समान नीति निर्माण और कार्यान्वयन की अनुमति देते हुए स्वास्थ्य को समवर्ती सूची में स्थानांतरित करने की सिफारिश की थी। यह परिवर्तन राज्य की स्वायत्तता को संरक्षित करते हुए राष्ट्रव्यापी मानकों को स्थापित करने के लिए जमीन तैयार कर सकता है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित इंदु भूषण के लेख पर आधारित। 3 जून, 2023