भारत के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग के लिए अन्य देशों से सीख

Afeias
22 Feb 2025
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भारत के समावेशी विकास के लिए सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग एक प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं। इस समय देश में 6.34 करोड़ छोटे उद्यम सक्रिय हैं, जिनसे 10 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार मिला हुआ है। सकल घरेलू उत्पाद में एमएसएमई 30% का योगदान देते हैं। फिर भी इनकी पूर्ण संभावनाओं के लिए अभी कई उपाय शेष हैं, जिन्हें आगामी बजट में दूर करने की कोशिश होनी चाहिए।

वित्तीय संसाधनों तक पहुँच –

यूके सिन्हा समिति के अनुसार ये इकाइयां करीब 240 से 300 अरब डॉलर फंड़िग की कमी से जूझ रही हैं। अर्नेस्ट एंड यंग के अनुसार भारत में एमएसएमई की कर्ज तक पहुँच मात्र 14% है, जबकि चीन में 37% तथा अमेरिका में 50% है।

  • इसके लिए भारत के क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट फॉर माइक्रो एंड स्माल इंटरप्रासेज का दायरा बढ़ाना चाहिए।
  • जर्मनी का KFW मॉडल अपनाना चाहिए, जो एक सरकारी बैंक है। यह क्रेडिट गारंटी और तकनीकी सहायता कम जोखिम पर उपलब्ध कराता है। इससे निवेश व नवाचार भी बढ़ता है।

डिजिटल विस्तार –

भारतीय एमएसएमई द्वारा डिजिटल प्रणालियों को अपनाने की दर केवल 20% है। जबकि ताइवान व सिंगापुर में क्रमशः 91 और 97% है।

  • भारत को आईटी कंपनियों के साथ मिलकर 100 डिजिटल ट्रांसफार्मेशन सेंटर बनाने चाहिए। सरकार ई-मार्केटप्लेस डिजिटल उपाय अपनाने में उत्प्रेरक की भूमिका निभा सकता है।
  • जापान ने भी इसके लिए टेक्नीकल सेंटर्स स्थापित किए। सिंगापुर ने सब्सिडी, प्रशिक्षण एवं समाधान प्रक्रियाओं की सहायता से 95% डिजिटल विस्तार किया।

बाजार तक पहुँच –

यद्यपि एमएसएमई की निर्यात में हिस्सेदारी 49% है। इसके बावजूद ये उद्यम वैश्विक वैल्यू चैन का आपेक्षित लाभ नहीं उठा पा रहे हैं।

  • इसके लिए एक निर्यात कोष बनाया जाना चाहिए।
  • DGFT पोर्टल टूल की मदद से डिजिटल प्लेटफार्म पर सूचनाएँ उपलब्ध कराई जा सकती है। अमेरिका में ऐसी ही व्यवस्था है। इससे तत्काल ऋण मंजूरी मिलती है एवं वित्तीय समावेशन की स्थिति सुधरती है।

सुगम कर एवं अनुपालन व्यवस्था –

इन उद्यमों को GST फाइल से लेकर आयकर ब्यौरा देने जैसी जटिल प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है, जिससे उन्हें संगठित बाजार में स्वयं को सुगठित करने में जटिलताओं का सामना करना पड़ रहा है।

  • ब्राजील के सिंप्लेस कार्यक्रम के तहत एकीकृत तंत्र बनाया गया है। इससे सरलीकृत दरों और पूर्वनियोजित प्रतिवेदन जैसे प्रावधानों की सुविधायें उपलब्ध है।
  • हमें भी GST को सहज करना होगा तथा उद्यम पंजीकरण की जटिलताओं को दूर करना होगा।
  • रियल टाइम निगरानी द्वारा तत्काल समस्याओं के समाधान उपलब्ध कराए जाने चाहिए।

हमें कौशल विकास पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए। एमएसएमई मंत्रालय के अंतर्गत एक उच्च अधिकार प्राप्त एमएसएमई ट्रांसफार्मेशन काउंसिल गठित की जानी चाहिए।

इन सब उपायों को करने से खर्च बढ़ेगा। लेकिन मलेशिया के उदाहरण से हम देख सकते हैं कि ऐसे व्यय फलदायी सिद्ध होते हैं। वहाँ 2018 से 2023 तक GDP में एमएसएमई का योगदान 32% से बढ़कर 38% हो गया।

इन उपायों से हमें विकसित भारत का लक्ष्य प्राप्त करने में सहायता मिलेगी। साथ ही सरकारों, वित्तीय संस्थानों और उद्योग संस्थानों के बीच वित्तीय समन्वय भी स्थापित होगा।

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