असम और संबंधित राज्यों के बीच शांतिपूर्ण समाधान जरूरी है

Afeias
11 Aug 2021
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Date:11-08-21

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वर्तमान में असम-मेघालय, असम-मिजोरम, असम-नगालैण्ड और असम-अरूणाचल प्रदेश की सीमाएं विवाद का केंद्र बनी हुई हैं। इन विवादों के चलते यहाँ आए दिन अनके हिंसक घटनाएं होती रहती हैं।

संविधान बनाम परंपरा –

हाल ही में, असम के मुख्यमंत्री हिमंत विस्वा सरमा ने संवैधानिक सीमाओं का उल्लेख किया है। ये सीमाएं, असम के विभाजन से बने नए राज्यों के निर्माण के दौरान बिना किसी विवाद के स्वीकार की गई थीं।

इन क्षेत्रों का सीमांकन, सर्वप्रथम 1826 में अंग्रेजों द्वारा किया गया था। अब इन राज्यों के लिए संवैधानिक सीमाओं की चर्चा कोई मायने नहीं रखती, और वे पारंपरिक सांस्कृतिक सीमाओं को ही मान्यता देते हैं।

बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन 1873, पहाड़ियों और असम के मैदानों में इन जनजातियों के बीच सीमांकन के लिए खींची गई रेखा थी। इसे ही इनर लाइन परमिट कहा जाता है।

समाधान क्या हो सकते हैं ?

  • भारत असंख्य जातियों का उपमहाद्वीप है और प्रत्येक जनजाति का मानना है कि वह उस स्थान के लिए स्वदेशी है, जिस पर वह कब्जा करता है। पूर्वोत्तर राज्यों की जनजातियों के लिए, ‘देश’ शब्द उनके संबंधित गृहभूमि तक ही सीमित है। उनके लिए राष्ट्र एक ऐसी जगह है, जहां वे अपने पूर्वजों की तरह जीने के लिए स्वतंत्र हैं। यदि उन्हें बाहरी खतरे की आशंका होती है, तो वे प्रतिक्रिया करते हैं। अतः असम और अन्य राज्यों के बीच सीमा विवादों को हल करने के लिए उच्च कोटि का नेतृत्व आवश्यक है।
  • प्रत्येक सीमा संघर्ष के बाद मिजोरम और नागालैण्ड पर असम ने आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए थे, जबकि इन राज्यों के परस्पर सहयोग से अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है। पूर्व में विवादित क्षेत्रों को आर्थिक क्षेत्र में बदलने का प्रस्ताव था, जिसे अमल में लाया जाना चाहिए। इससे विवादित सीमाओं को शैक्षिक केंद्रों, आईटी पार्क, स्वास्थ केंद्र और पर्यटन स्थलों के रूप में तब्दील किया जा सकता है।
  • विवादित क्षेत्रों को एक केंद्रीय एजेंसी द्वारा प्रशासित किया जा सकता है।
  • अच्छी शिक्षा और बुनियादी ढांचे के विकास के माध्यम से विवादों को कम किया जा सकता है। इससे दोनों पक्षों के लोग लाभान्वित होंगे।
  • उत्तर पूर्वी परिषद् और बाद में उत्तर पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय (डोनर) जैसी संस्थाओं को अधिक सक्रिय भूमिका निभाते हुए, वहां के स्थानीय समाज को शामिल करके निवेश प्रारंभ करने चाहिए।

बढ़ती आबादी और सिकुड़ते राज्यों के लिए अधिक भूमि की मांग ही विवादों का मुख्य कारण है। राज्यों के साझा हितों को जोड़कर ही इनका समाधान ढूंढा जा सकता है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित पेट्रीसिया मुखिम के लेख पर आधारित। 29 जुलाई, 2021

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