अस्पृश्यता का शर्मनाक प्रचलन

Afeias
26 May 2025
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भारत में अभी भी अस्पृश्यता जैसी प्रथा का प्रचलन होना अपमानजनक लगता है। शर्मनाक वास्तविकता यह है कि अभी भी दलितों के मंदिर प्रवेश के बाद उसके शुद्धिकरण के उदाहरण नियमित रूप से सामने आते हैं।

हाल ही में राजस्थान में एक पूर्व भाजपा विधायक एक गौरक्षक ने ऐसा कर दिखाया है। इस पर पार्टी ने उन्हें निलंबित कर दिया है। यहाँ कुछ बिंदुओं पर ध्यान देने की जरूरत है –

  • भारत के संस्थापकों ने सामाजिक परिदृश्य को देखते हुए ही समानता को स्वतंत्र राष्ट्र की नींव के रूप में मान्यता दी है।
  • इसके बाद नमाज में हिंदू दक्षिणपंथी विचारधारा के लोग अभी भी मंदिरों पर उच्च जातियों के नियंत्रण को बनाए रखना बुरा नहीं मानते हैं। वे चाहते हैं कि मंदिरों पर सरकार का नियंत्रण खत्म हो जाए। हाल ही में हुई यह घटना बताती है कि हिंदू मंदिरों पर सरकार का नियंत्रण क्यों जरूरी है।
  • अस्पृश्यता समाज के लिए एक कलंक है। यह मानवता के लिए अपमानजनक है।
  • यह आर्थिक विकास के लिए समान अवसरों में बाधा बनती है।
  • इसके चलते सामाजिक द्वेष बहुत बढ़ जाते हैं।
  • सरकार ने इसके प्रचलन को रोकने के लिए कानून भी बनाए हैं। अस्पृश्यता एक दंडनीय अपराध है।

कुल मिलाकर, अस्पृश्यता के मामलों पर सरकार को कड़ी और त्वरित प्रतिक्रिया देनी चाहिए। सरकार ने ऐसा किया भी है। इसके उन्मूलन के लिए सबके सहयोग की आवश्यकता है।

द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 10 अप्रैल, 2025