असामंजस्य की कीमत

Afeias
27 Apr 2022
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भारत एक विविधतापूर्ण देश है। यहाँ अनेक समूहों के अपने विचार, परंपराएं, भाषा, खानपान, वेशभूषा, मान्यताएं आदि हैं। इस वातावरण में किसी एक समूह के विचारों को दूसरे पर थोपने का जोखिम नहीं उठाया जा सकता है।

18वीं शताब्दी में हुई औद्योगिक क्रांति मानवता को परिवर्तित करने वाली एक महत्वपूर्ण घटना थी। इसने न केवल हर समाज की आर्थिक व्यवस्था को पूरी तरह से बदल दिया, बल्कि साथ ही साथ उनके शासित होने के तरीके में भी अनेक बदलाव किए।

तब से, समुदाय-केंद्रित परंपराओं और आर्थिक व्यवस्थाओं के बीच की खाई को पाटने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं।

चूँकि भारत जैसे विविधता वाले देश में भी आर्थिक आधुनिकीकरण की खोज की जानी थी, इसलिए शासन का लक्ष्य हमेशा ही अपनी आर्थिक और सामाजिक दृष्टि को आगे बढ़ाने के तरीके को खोजने की ओर रहा।

भारत के सतरंगी समाज को साधने का साधन संविधान को बनाया गया, और वह आज भी है। इसके संचालन के लिए ऐसी सरकार की आवश्यकता है, जो पक्षपातपूर्ण न हो। यहाँ का न तो समाज अखंड है, न ही उपसमूह एक समान हैं। समूहों के बीच मतभेदों ने यदा-कदा हिंसा के दौर को भी जन्म दिया है।

आधुनिक प्रशासन के पूरे तंत्र का मार्गदर्शन करने वाला सिद्धांत, विभिन्न परंपराओं को सह-अस्तित्व की अनुमति देने के बारे में है। यह किसी समूह की दूसरों के अधिकारों पर अतिक्रमण करने की प्रवृत्ति की जांच करता है। यह अजनबियों को जीविका की खोज में स्थान साझा करने के लिए तैयार करता है। इसका लाभ संघर्ष पर विराम होता है।

हाल के कुछ वर्षों में शासन या सरकार, एक समान दृष्किोण बनाए रखने में असफल रही है। कानूनी आधार के बिना भी, एक समूह दूसरों पर अपने मूल्य लागू करने का प्रयास करने लगे हैं। ऐसी प्रवृत्ति हिंसा को जन्म दे रही है। यह हिंसा सार्वजनकि स्थानों से लेकर विश्वविद्यालय परिसर तक फैली हुई है। इस संदर्भ में यह नहीं भूलना चाहिए कि ऐसे संघर्षों में कोई विजेता नहीं होता है। समुदायों को आर्थिक प्रगति में बाधा डालने वाली घटनाओं से हार ही तो मिलनी है।

विडंबना यह है कि सब कुछ देखते-समझते हुए भी सरकार एक समूह को दूसरे के अधिकारों पर अगर अतिक्रमण करने दे रही है, तो इस ढलान पर फिसलन ही दिखाई देती है।

भारत के राज्यों को चाहिए कि शासन की अनदेखी के परिणामों के प्रति सचेत रहें। हमारे शासन की संरचना में अंतर्निहित भावना से जुड़े बिना कोई शांतिपूर्ण समाधान नहीं है। सरकार का वर्तमान रवैया आर्थिक संभावनाओं को दबा देगा। सह-अस्तित्व का वातावरण ही आर्थिक और सामाजिक प्रगति का एकमात्र मार्ग है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 12 अप्रैल, 2022